(9) वंदे मातरम

तवा संगीत: (9) वंदे मातरम 🇮🇳 🇮🇳



पंकज खन्ना, इंदौर।

9424810575



(नए पाठकों से आग्रह: इस ब्लॉग के परिचय और अगले/पिछले आलेखों के संक्षिप्त विवरण के लिए यहां क्लिक करें।🙏)


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वंदे मातरम,

सर्वप्रथम स्वतंत्रता दिवस  के पावन पर्व पर आप सभी देश प्रेमियों और संगीत प्रेमियों को बधाईयां और हार्दिक शुभकामनाएं! 🇮🇳 🇮🇳

पंद्रह अगस्त पर बचपन में निबंध लिखा जाना याद आ रहा है। मन से लिखते तो हिंदी के मास्टरजी नंबर काट लेते थे और बोलते थे कहानियां मत बनाओ! उनका लिखाया प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक का निबंध पूरा कभी रट नहीं पाते थे। भूल जाते थे। चनकट पड़ते थे। मुर्गा भी बनना पड़ता था। अब कोई चिंता नहीं है! अब इस  आलेख में गाने , फोटो और कहानियां भी डाल सकते हैं! 

सन 1970 से 1975 (आयु 8-13 वर्ष) के बीच हर साल 15 अगस्त* के शुभ  दिन सुबह-सुबह अच्छे बच्चों की तरह नहा धोकर नए या सबसे अच्छे कपड़े पहनकर, जूते पहनकर घर से शूरवीरों के अंदाज़ में निकलते थे। (आमतौर पर तो बच्चे स्कूल नंगे पैर, कंधे पर पिताजी की पुरानी पेंट का झोला और  हाथ में चप्पल पहनकर ही जाया करते थे।)

एक हाथ में फुग्गा और एक हाथ में कागज़/सरकंडे का झंडा ऊपर उठाए, पारसी मोहल्ले की पतली गलियों से गुजरकर, दोस्तों को इकठ्ठा करके, रास्ते भर झूमते ,इठलाते ,वंदे मातरम का उद्घोष करते थे। जगह-जगह देश भक्ति के गाने रेडियो/ ग्रामोफोन/रिकॉर्ड प्लेयर/लाउड स्पीकर पर सुनते हुए हमारे जगन्नाथ विद्यालय छावनी पहुंच जाते थे।(कैसेट्स और टीवी तो बहुत बाद में आए थे।)

और स्कूल में भी वो ही देशभक्ति के गाने, तवे/लाउड स्पीकर पर बजते रहते थे फुल वॉल्यूम में। झंडावंदन के बाद में थोड़ा सा  बोरिंग भाषण और उसके बाद स्कूल द्वारा खुले हाथ से दी जानेवाली मिठाइयां और नमकीन। वो स्वाद, मस्ती, उत्सव का माहौल और उत्साह के अतिरेक में बुलंद स्वरों में वंदे मातरम गाना कभी भूल नहीं सकते हैं। और ये अविस्मरणीय कहानी सिर्फ हमारी नहीं , पूरी पीढ़ी की है। भारत के हर शहर के हर गली मोहल्ले की कहानी है।🙏 🇮🇳

नौकरी में आने के बाद विभिन्न कार्यालयों में 15 अगस्त के कार्यक्रम देखकर पता चला कि आधे से ज्यादा लोगों को वंदे मातरम के बोल भी मालूम नहीं होते थे। इसे बड़ी ही मातमी शकल और मनहूसियत के साथ गाया जाता था। छुट्टी के दिन झंडावंदन अधिकतर कर्मचारियों को बोझ लगता था। और ये भी भारत के हर शहर के लगभग सभी कार्यालयों की कहानी है।

आज के आलेख में सिर्फ एक ही गीत, राष्ट्रगीत , वंदे मातरम की  बात होगी। इसे लगभग हर भारतीय ने अपने जीवन काल में कभी न कभी  गाया है। जिस काल से इस गीत की रचना हुई है उस काल से लेकर आज तक इसे अधिकतर गायक कलाकारों/संगीतकारों ने गाया है। कुछ के रिकॉर्ड्स या कैसेट्स उपलब्ध भी हैं।

सारे तो नहीं पर कुछ  पुराने वाले  'वंदे मातरम' भी  यू ट्यूब पर या Archives of Indian Music  या soundcloud.com पर मिल जाते हैं। 1905 से लेकर 1970 के बीच 'वंदे मातरम' , 78 RPM के  तवे (रिकॉर्ड्स) पर 100 से ज्यादा बार अंकित हो चुका है। इनमें से कुछ तवे तो किसी के पास भी उपलब्ध नहीं हैं, बस रिकॉर्ड कंपनियों के पुराने कैटलॉग में इनका जिक्र मिलता है। कुछ संग्रहकर्ताओं के पास कुछ  वंदे मातरम के तवे उपलब्ध तो हैं पर वो  वंदे मातरम यू ट्यूब या किसी और साइट पर अपलोड नहीं किए गए हैं।

इस आलेख में  उन्ही तवे वाले 'वंदे मातरम' के बारे में लिखा जा रहा है जिन्हें उपरोक्त साइट्स पर upload (उद्भारित) किया गया हो और जिनका लिंक उपलब्ध हो। आप समझ सकते हैं कि ये एक काफी बड़ा काम है, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण तवे छूट जाने की पूरी-पूरी संभावना है। गुणी पाठकजनों से निवेदन है कि कोई वंदे मातरम, 1905 से 1970 के बीच का, छूट गया हो तो अपना समझ के माफ कर दें और ब्लॉग के कमेंट सेक्शन में गलती दर्ज कर दें। ब्लॉग आलेख को समय समय पर सुधार कर अपडेट कर दिया जाएगा ताकि सनद रहे।

वंदे मातरम गीत का संक्षित इतिहास आलेख के नीचे footnote ( फुटनोट, पाद लेख) में संदर्भ स्वरूप लिखा है।**

इस ब्लॉग के लिंक्स से आप 'वंदे मातरम' के  कुल मिलाकर 30 से ज्यादा अलग-अलग संस्करण सुन सकते हैं। आप इसी जगह से आपकी सहूलियत के अनुसार कभी भी वंदे मातरम की श्रवण सभा  ( Listening Session) आयोजित कर सकते हैं। 🙏

अब हमारे स्वयं के वंदे मातरम के संग्रह के बारे में बातें कर लेते हैं। सन 1988 में इंदौर के जिंसी  मैदान से रविवार के हाट से बहुत ही बुरी और टूटी फूटी हालत में  ये तवा प्राप्त किया था। फोटो नीचे लगी है।





ये तवा परिधि के कई हिस्सों में टूटा हुआ है। ये फोटो सिर्फ तवे के लेबल का है। आप इस पर लगी रबर की मोहर को देख और पहचान सकते हैं। ऐसे White Label Record HMV द्वारा विशेषतः संस्थानों के  ऑर्डर पर  बनाए जाते  थे। ये साधारण लाल लेबल वाला श्वान छाप तवा नहीं है बल्कि चरखा छाप तवा है।( हमारे पास और भी चरखा छाप तवे हैं जो आपको समय समय पर दिखाए और सुनाए जायेंगे।)

इस तवे के एक तरफ वंदे मातरम (राष्ट्र गीत) मुद्रित है और दूसरी तरफ जन गण मन(राष्ट्र गान)। हमारे लिए तो ये अनमोल तवा है कई कारणों से। 

प्रथम कारण: इसमें राष्ट्रगीत और राष्ट्र गान अंकित हैं।🇮🇳

द्वितीय कारण: इसमें चरखे की तस्वीर है, जो हमारी आजादी की लड़ाई का प्रतीक है।🇮🇳

तीसरा कारणये ना बता सकूंगा मैं!🤗🤗🥰🥰

बस इतना कह सकता हूं कि इसमें  जगमोहन सुरसागर की आवाज भी है!

चौथा कारण: इस पर मध्य भारत कांग्रेस कमेटी की मोहर लगी है।

इस वंदे मातरम को गाया है जगन्मोय मित्रा ( हिंदी नाम जगमोहन सुरसागर), द्विजेन  चौधरी, देबब्रत बिस्वास, निहारबिंदु सेन,सुचित्रा मुखर्जी, कनक दास,सुप्रीति घोष और गीता नाहा ने। ये सभी अपने जमाने के दिग्गज गवैए हैं। किसी बुजुर्ग बंगाली भद्रपुरुष से पूछकर देखिए , वो गदगद हो जायेंगे और आपको उस दौर की  सैर करा लायेंगे! इसे सन 1951 में रिकॉर्ड किया गया था। इस वंदे मातरम को सुनने के लिए यहां क्लिक करें।


दूसरा रिकॉर्ड नागपुर की फुटपाथ पर पुरानी किताबों के विक्रेता से खरीदा गया है सन 1990 के आस पास । इसकी हालत भी बहुत दयनीय है। इन रिकॉर्डस के ऊपर  दर्जन भर किताबों का बोझ रखा था और इसपर भी दर्जन भर खरोंचे ( Scratches) हैं । रिकॉर्ड की फोटो नीचे दी गई है।



ये सन 1940 का बना हुआ रिकॉर्ड है। इसमें वंदे मातरम के गायक गायिका हैं: प्रोवा रॉय, जय दास, विजया देवी, धीरेन गुप्ता और हरिपद चैटर्जी। इस वंदे मातरम को सुनने के लिए यहां क्लिक करें।


तीसरा रिकॉर्ड  खरीदा गया है इंदौर की एक खास दुकान से जिसका जिक्र एक  समर्पित  आलेख में शीघ्र ही किया जाएगा। इस रिकॉर्ड की फोटो भी नीचे दी गई है:





इसे गाया है इन गायक गायिकाओं ने: सती देवी, कमल दास, अजय बिस्वास और सोमन गुप्ता ने। संगीत दिया है, फिर से, जगमोहन सुरसागर ने। इस 1950 में रिकॉर्ड किया गया था। इस वंदे मातरम को सुनने के लिए यहां क्लिक करें।

इन तीन वंदे मातरम के संस्करणों के अलावा और भी बहुत सारे तवे बने हैं, 100 से भी ज्यादा।इन सभी रिकॉर्ड्स में स्वर दिए हैं उस जमाने के जाने माने गायक गायिकाओं ने। इन सभी ने इसी एक गीत को अलग अलग ढंग से अलग अलग रागों में विभिन्न शैलियों में गाया है जैसे राग देश मल्हार, राग दुर्गा,राग सारंग, राग काफी, राग बंगिया काफी, राग झिंझोटी, राग खंबावती, राग मालकौंस, राग भैरवी आदि।

इन गीतों को जरूर सुनें। इन सभी गीतों में बहुत ही कम वाद्य यंत्रों का उपयोग हुआ है और बहुत मधुर गायकी है।इनमें संगीत शब्दों पर हावी नहीं होता है।संगीत सिर्फ संगत के लिए है।जैसे जैसे समय गुजरता गया नई टेक्नोलॉजी आती गईं संगीत हावी हो गया और शब्द बैकग्राउंड में चले गए। और यही सब वन्देमातरम के साथ भी हुआ है। इसलिए इन पुराने वंदे मातरम को सुनने का आनंद ही कुछ और है।

ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स की एक छोटी सी सूची नीचे दी गई है, जो क्रमानुसार नहीं है। सुनने के लिए कलाकारों के नाम पर क्लिक करें। बेहतर ये होगा की पहले पूरा आलेख पढ़ लें और फिर ये लिंक्स खोलें।( ये गीत तीन स्रोतों पर उपलब्ध हैं: यू ट्यूब, Archives of Indian Music और soundcloud.com. आप यदि इस प्रकार के बहुत पुराने गानों के शौकीन हैं तो आप Soundcloud का App भी डाउनलोड कर सकते हैं।)

  1. रविंद्र नाथ टैगोर सन 1905 (पहला वंदे मातरम तवा )

  2. नारायण चंद्र मुखर्जी  

  3. सत्यभूषण गुप्ता

  4. पंडित ओंकारनाथ ठाकुर 

  5. पंडित ओंकारनाथ ठाकुर 15 अगस्त

  6. मास्टर कृष्णराव फूलंबरीकर

  7. विश्वभारती संगीत सभा

  8. बापुराव दाते 

  9. दिलीप कुमार रॉय

  10. एमएस सुबुलक्ष्मी और दिलीप कुमार रॉय

  11. विष्णुपंत पगनीस

   12.  केशव राव भोले

  13.   पंकज मलिक

  14.   भबानी चरण दास भाग 1 भाग 2

  16.   सुप्रीति घोष

  17.   सावलाराम बोआ शेजवाल

   18.  लता मंगेशकर

   19.  हेमंत कुमार

   20.  लता मंगेशकर और हेमंत कुमार

   21.  गीता दत्त और जीएम दुर्रानी

   22.  वसंत देसाई भारतीय वाद्यों के साथ

   23.  वसंत देसाई पश्चिमी वाद्यों के साथ

   24.  तिमिर बरन (वाद्य यंत्र)

   25.  मोगुबाई कुर्दीकर

   26.  वी डी अंभाइकर

   27.  पन्नालाल घोष (संगीतकार के रूप में)

   28. आकाशवाणी की धुन/वंदे मातरम 

   29. आकाशवाणी का कोरल ग्रुप

   30  दूरदर्शन की वंदे मातरम धुन


ये सभी गीत 1955 से पहले के हैं और इनके तवे भी बने है। इसके बाद भी वंदे मातरम के सैकड़ों बहुत सुंदर दर्शनीय और श्रवणीय संस्करण आ चुके हैं ; लेकिन वो सभी इस आलेख और ब्लॉग के विषय क्षेत्र के बाहर हैं।उपरोक्त सूची के कुछ तवों के बारे में  आने वाले समय में विस्तार से चर्चा की जा सकती है।

इस सूची में कुछ बड़े गायक गायिकाओं के नाम न देखने पर थोड़ा दुख और आश्चर्य होना अवश्यंभावी है। इस बात की पूरी संभावना है कि हमारा शोध कम पड़ गया हो और कुछ नाम छूट गए हों। या ये भी हो सकता ही कि उन्हें गाने का मौका ही न मिला हो।कारण कुछ भी रहा हो, शोध जारी रहेगा और आने वाले महीनों में और नाम भी जुड़ते जायेंगे। इस ब्लॉग आलेख के और भी संस्करण आवश्यकतानुसार प्रेषित किए जायेंगे।

जाते जाते एक बात और बताना चाहता हूं। उपरोक्त 30 वीडियो जो सालों से यू ट्यूब पर या अन्य साइट्स पर  लगे हैं, इन सबको कुल मिलाकर भी 10 लाख से ज्यादा बार नहीं देखा गया है। परंतु विडंबना देखिए, टाइगर श्रॉफ का नया 'वंदे मातरम वीडियो'  जो सिर्फ 4 दिन पहले  10 अगस्त को यू ट्यूब पर लगाया गया है , उसे अब तक 2.5 करोड़ लोग देख चुके हैं! 

आप सभी को फिर एक बार स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!🤗🤗🥰🥰🙏🙏🙏 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳

वंदे मातरम!

पंकज खन्ना

9424810575


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*पंद्रह अगस्त की पवित्र तिथि पर एक गैर फिल्मी गाना है जिसे किशोर कुमार ने गाया है सन 1949 में। संगीत बाला सिंघ का है और लिखा केशव त्रिवेदी ने है। गाने में किशोर कुमार का साथ दिया है आरपी शर्मा  ने। गाने के बोल हैं: 15 अगस्त की पुण्य तिथि फिर धूमधाम से आई।

ये गाना ज्यादा नहीं चला, शायद 'पुण्य तिथि' शब्द का चुनाव गलत था। किशोर कुमार ने बहुत अच्छा गाया है, शब्दों का भावार्थ भी अच्छा है,संगीत भी ठीक ठाक  है। यहां क्लिक करें सुनने के लिए।

इस गाने का दूसरा भाग भी है, उसे सुनने के लिए यहां क्लिक करें। 


**वंदे मातरम का संक्षिप्त इतिहास:

रविवार, 7 नवंबर 1875, 'अक्षय नवमी' के दिन बंकिमचंद्र चटर्जी (1838-94) ने कलकत्ता से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर नैहाटी गांव में कंतलपाड़ा में अपने आवास पर अपना प्रसिद्ध गीत बंदे मातरम लिखा।  

बंकिमचंद्र को कलकत्ता विश्वविद्यालय से  बीए  करने के तुरंत बाद, डिप्टी मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया, और अंततः वह डिप्टी कलेक्टर बन गए। काम के कारण उनकी पुराने कागजात और राजपत्रों तक पहुंच थी। उन्हें इस दौरान, ढाका, उत्तरी बंगाल, नेपाल, तराई, दिनाजपुर, रंगपुर और पूर्णिया में संन्यासियों (संतों) के विद्रोह (1760-1780) से संबंधित दस्तावेजों के बारे में पता चला। उन्होंने इन संन्यासियों के वीर कर्मों के आधार पर एक उपन्यास, आनंदमठ लिखने का फैसला किया।  अपनी युवावस्था में, उन्होंने 1857 के असफल विद्रोह को भी देखा था। 1870 के आसपास, ब्रिटिश शासक भारतीयों पर अपना गाना, गॉड सेव द क्वीन, थोपने की बहुत कोशिश कर रहे थे।  इसने बंकिमचंद्र के संवेदनशील मन पर गहरा प्रभाव डाला, और उन्होंने एक ही बैठक में वंदे मातरम को एक ऐसे मूड या मनोवस्था में लिखा, जिसे पारलौकिक ही समझा जा सकता है।  उन्होंने गीत को एक प्रार्थना के रूप में लिखा था जिसमें राष्ट्र 'भारत' को 'माँ' के रूप में वर्णित किया गया था।  गीत को बाद में उनके उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया था, जो प्रकाशित हुआ था 1882 में। वंदे मातरम शायद ब्रिटिश राष्ट्रगान, (गॉड सेव द क्वीन) का भारतीय उत्तर थी । 

1896 में, चटर्जी की मृत्यु के दो साल बाद, रवींद्रनाथ टैगोर ने कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन में वंदे मातरम का पाठ किया।  कांग्रेस के अधिवेशनों में वंदे मातरम गाने की परंपरा जारी रही, और आज भी इसे लोकसभा और विधानसभा सत्रों की शुरुआत में गाया जाता है।

यह गाना अब 145 साल का हो गया है।  यह शायद एकमात्र भारतीय गीत है जो अभी भी पूरे भारत में व्यापक रूप से लोकप्रिय है, और संगीतकार अभी भी इसे बार-बार रिकॉर्ड करना चाहते हैं, और इसके लिए नई धुनों की रचना करते रहते हैं।

(वंदे मातरम का सरल हिंदी अनुवाद समझने के लिए ये संस्करण सुनें।)


🙏🙏🙏  🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳














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