तवा संगीत:(16) वैष्णव जन तो तेने कहिए
पंकज खन्ना, इंदौर।
9424810575
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आज गांधी जयंती के उपलक्ष में थोड़ा बड़ा और बहुत गंभीर विषय चुन लिया है: गांधीजी का प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिए। इसे 15वीं सदी में गुजरात के आध्यात्मिक कवि नरसिंह मेहता या नरसी मेहता ने लिखा था।
महात्मा गांधी की नित्य प्रार्थना सभा में यह भजन भी सम्मिलित था। इस भजन में वैष्णव जनों (विष्णु के अनुयाइयों) के लिए क्या करें और क्या न करें, इसका वर्णन है। ये हमारे बचपन में स्कूलों में भी प्रार्थना का हिस्सा हुआ करता था।
समय के साथ इस भजन की प्रासंगिकता भी बढ़ती जा रही है। लेकिन इसके बारे में ऊंची/नीची, पिछड़ी/अगड़ी जातियों और राजनीतिक विचारधाराओं में बटा हुआ समाज ज्यादा बात करेगा ; ऐसी संभावना कम है। फिर भी कोशिश तो की ही जानी चाहिए।
व्हाट्सएप के संदेशों को देखकर लगता है कि आज की तारीख में सच्चाई, विश्लेषण, तर्क, भाषा की खूबसूरती, और दिल को छूने वाले किस्सों के लिए अधिक स्थान नहीं है। कई लोगों को नकारात्मक विचार थोपे जाएं तो वो सहर्ष स्वीकार करते हैं और बगैर कुछ विचार किए आगे भेज भी देते हैं।
पर इस ब्लॉग में हमारा उद्देश्य सिर्फ उनके प्रिय भजन के बारे में चर्चा करना है और उनके जन्म दिन पर उनको सादगी से याद करना है। ऐसे दौर में महात्मा गांधी और उनके प्रिय भजन 'वैष्णो जन तो ' को याद करना महज सरकारी और सामाजिक औपचारिकता ही है।फिर भी कोशिश तो की ही जानी चाहिए।🙏
सबसे पहले तो भजन के शब्दों को लिख दिया जाए:
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
पर दुख्खे उपकार करे तोये मन अभिमान ना आणे रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
सकळ लोक मान सहुने वंदे नींदा न करे केनी रे।
वाच काछ मन निश्चळ राखे धन धन जननी तेनी रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी पर स्त्री जेने मात रे।
जिह्वा थकी असत्य ना बोले पर धन नव झाली हाथ रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
मोह माया व्यापे नही जेने द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे।
राम नाम सुन ताळी लागी सकळ तिरथ तेना तन मान रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
वण लोभी ने कपट- रहित छे काम क्रोध निवार्या रे।
भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता कुळ एकोतेर तारया रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
पर दुख्खे उपकार करे तोये मन अभिमान ना आणे रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे।
ये भजन गुजराती में जरूर है लेकिन इसका भाव हर भारतीय समझता है। इसका सरल हिंदी अनुवाद नीचे दिया है:
वैष्णव व्यक्ति वही है, जो दूसरों की पीड़ा को समझता हो।दुखियों पर उपकार करे तो मन में अभिमान ना आने दे। जो सभी का सम्मान करे और किसी की निंदा न करे। जो वचन, कर्म, मन को निश्छल रखे, उसकी मां धन्य-धन्य है।जो सबको समरूप देखे, तृष्णारहित हो, पराई स्त्री में मां देखे। जिसकी जिह्वा असत्य ना बोले, ना पराए धन की इच्छा करे।जो मोह माया में लिप्त न हो, जिसके मन में दृढ़ वैराग्य हो। जो राम नाम का जाप करे, उसके शरीर में सारे तीर्थ हैं। लोभ, कपट रहित हो,और काम,क्रोध पर विजय कर ली हो।ऐसे वैष्णव के दर्शन से ही, परिवार की पीढ़ियां तर जाती हैं।
वैष्णो जन का मतलब है ईश्वर का उपासक या खुदा का बंदा। इसके बोल सभी धर्मावलंबियों के लिए उपयुक्त हैं। यहां वैष्णव जन का मतलब एकदम सीधा है: अच्छा इंसान। और वो किसी भी धर्म या जाति का हो सकता है।
कवि नरसी मेहता की इस कविता से प्रेरित होकर ही मोहनदास करमचंद गांधी महात्मा गांधी बन गए थे।गाँधीजी ने इस भजन को पूरी तरह आत्मसात किया था। महात्मा गांधी संत थे, पीर थे। जो पराई 'पीर' जानता है वही तो होता है 'पीर'।
आज हम अगर इस भजन की सिर्फ प्रथम दो लाइनों को ही , अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए, अपने लोगों के बीच में ही अपना लें तो भी शायद वैष्णो जन बनने की पात्रता प्राप्त कर सकते हैं।
अब इस भजन के रचयिता की ओर चलते हैं। गुजराती भक्ति साहित्य के श्रेष्ठतम आदि कवि संत नरसी मेहता का जन्म 1414 ई. में जूनागढ़ के निकट, तलाजा ग्राम में एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माता-पिता का बचपन में ही निधन हो गया था। स्वयं फक्कड़ प्रवृति के थे और अधिकतर संतों के साथ घूमा करते थे। मीरा के समान, वो हर समय कृष्णभक्ति में तल्लीन रहते थे। उनके लिए सब बराबर थे। छुआ-छूत वो नहीं मानते थे और दलितों की बस्ती में जाकर उनके साथ कीर्तन किया करते थे । कविताएं और भजन तो लिखा ही करते थे। गुजराती साहित्य में नरसी का वही स्थान है जो हिन्दी में महाकवि सूरदास का है।
'वैष्णो जन तो' भजन सैकड़ों देशी-विदेशी कलाकारों द्वारा गाया और बजाया जा चुका है। इस संदर्भ में तो ये भजन राष्ट्र गीत और राष्ट्र गान को भी कहीं पीछे छोड़ चुका है।*
नीचे इस भजन को गाने वाले कुछ कलाकारों के नाम लिखे हैं। इन गायक गायिकाओं के गाए इस भजन को आप इनके नाम पर क्लिक करके सुन सकते हैं।
सबसे पहले, तवे पर अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज में ये भजन 1930 के दशक में रिकॉर्ड हुआ था।उसके बाद ये एमएस सुबुलक्ष्मी और लता मंगेशकर की आवाज में भी तवों पर रिकॉर्ड किया गया था।
सन 1940 में 'नरसी भगत' पिक्चर आई थी जिसमें संगीत दिया था शंकर राव व्यास ने। इसमें विष्णुपंत पगनिस ने नरसी मेहता का रोल किया था और ये भजन गाया था। इसी फिल्म में अमीरबाई कर्नाटकी ने भी इसी भजन को इस फिल्म के लिए दूसरी बार गाया था।
सन 1957 में एक और 'नरसी भगत' पिक्चर रिलीज हुई। इसमें संगीत दिया था रवि ने। इसमें 'वैष्णो जन तो' को
मन्ना डे ने गाया है। मुखड़े को वैसा ही रखा गया है पर इसके अंतरों को थोड़ा फेर बदल कर लिखा गया है। गीतकार का क्रेडिट गोपाल सिंह नेपाली ने हासिल किया है। आवाज और संगीत बहुत अच्छा है लेकिन शब्दों के फेरबदल ने इस कालजयी भजन का अपमान ही किया है।
तवे वाले, शास्त्रीय संगीत के उस्तादों वाले और कुछ पुराने वाले वर्शन सुनने के लिए नीचे लिखे लिंक्स पर क्लिक करें:
विश्वास कीजिए, सारे संस्करण एक से बडकर एक हैं। फुरसत में जरूर देखना, सुनना।
कई दिग्गज कलाकारों ने वाद्य यंत्रों पर 'वैष्णो जन तो' बहुत खूब बजाया है। इनको भी एक बार जरूर सुनिए। लिस्ट नीचे दी है:
'वैष्णो जन तो'
घोषवती वीना पर
'वैष्णो जन तो'
बांसुरी पर,
ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुराने लोगों ने ही इस भजन के साथ न्याय किया है। 'वैष्णो जन तो तेने कहिए' के कुछ 'नए' वर्शन भी बहुत ही बढ़िया गाए गए हैं। कुछ के लिंक्स नीचे दिए हैं:
लता मंगेशकर का नया वर्शन,
अनुराधा पौडवाल,
चित्रा एंड श्रेया घोषाल,
अनूप जलोटा,
कौशिकी चक्रवर्ती,
अजय चक्रवर्ती,
सोनू निगम,
कैलाश खेर,
कश्मीरी वर्शन,
बंगाली वर्शन-श्रेय घोषाल,
एनसीईआरटी वर्शन,
इंडियन नेवी बैंड,
नानी बाई रो मायरो( सुरेश वाडकर),
अशित देसाई और हेमा देसाई,
पलक मुछाल,
कप्पा टीवी प्रोडक्शन,
कविता कृष्णमूर्ति और अन्य कलाकार,
फिल्म्स डिवीजन एनीमेशन,
वैष्णो जन तेने कहिए:
कव्वाली के रूप मेंवैष्णो जन तेने कहिए:
बच्चे KBC के सेट परवैष्णो जन तेने कहिए:
अंग्रेजी मतलब के साथ,
'वैष्णो जन तो तेने कहिए'
राग खमाज पर आधारित है। राग खमाज पर आधारित फिल्मी गानों के बारे में जानने के लिए
यहां क्लिक करें!
इस आलेख के बहुत सारे विडियोज में आप गांधीजी को चरखा चलाते हुए देखेंगे। चरखा चलाते हुए भजन कीर्तन करना उनकी दिनचर्या में शामिल था।
गांधीजी और उनके भजन के बारे में बात करें तो चरखे (Spinning Wheel) के बारे में भी थोड़ा सी चर्चा कर लेनी चाहिए। आजादी की लड़ाई में संगीत और चरखे का बहुत महत्व रहा है। इस महत्व को दर्शाने के लिए
गौहर जान की 100 साल पुरानी Concert (संगीत सभा) का
Bombay Chronicle का विज्ञापन नीचे देखिए:
खादी, सेवा भाव, आत्मनिर्भरता , वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था, यांत्रिकी, गांधीजी और आज़ादी की लड़ाई के प्रतीक चरखे की एक फोटो भी ब्लॉग के एकदम अंत में लगाई गई है। और चरखे पर एक बहुत बड़िया गाना भी पेश है। गाने के बोल हैं :
जहां चरखा चले मतवाला , वहां होगा सदा बोलबाला। ये गाना सन 1938 की फिल्म ब्रह्मचारी से लिया गया है। इसे लिखा है पंडित इंद्रचंद ने। संगीतकार हैं दादा चांदेकर। इसे गाया है मनीषा, विष्णुपंत जोग और मास्टर विनायक ने। ये सुंदर गाना उस समय की राष्ट्रवादी सोच का परिचायक है।
आज आप दिन भर टीवी पर देखेंगे और सुनेंगे कैसे कैसे हिंसक प्रवृत्ति के लोग भी 'सत्य और अहिंसा' का राग अलापेंगे। दल बदलू नेता आपको दिन भर बताएंगे की कैसे गांधीजी के दिखाए मार्ग पर चलना है।
आप ये भी देखेंगे कि महीनों से हाईवे को कब्जा करने वाले तथाकथित किसान नेता और उनके समर्थक नेता , जिन्हें इस कृत्य में बिल्कुल हिंसा दिखाई नहीं पड़ती है, वो भी बापू की आढ में नेतागिरी चमकाएंगे; 'सत्य और अहिंसा' का झंडा फहराएंगे।
दिन भर राजघाट पर फूल चढ़ते रहेंगे और आम आदमी 'फूल' बनता रहेगा।
पंकज खन्ना, इंदौर।
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*जैसा कि आप जानते हैं; दो साल पहले गांधी जी की 150 वीं जयंती के उपलक्ष में भारत सरकार ने एक मुहिम चलाकर विभिन्न देशों में स्थित अपने उच्चायोग/दूतावास की सहायता से 147 देशों के कलाकारों द्वारा अलग-अलग भजन 'वैष्णो जन तो तेने कहिए' रिकॉर्ड किया।
इसके अलावा कुछ संयुक्त भजन medley के रूप में भी बनाए गए। एक संस्करण में
41 देशों के कलाकार द्वारा प्रस्तुति और दूसरे संस्करण में
124 देशों के कलाकार द्वारा पेशकश की गई थी। और एक संस्करण में
यूरोप और यूरेशियन कलाकारों ने बहुत खूबसूरत प्रदर्शन किया है। और एक अन्य संस्करण में कई
अफ्रीकन देश एक साथ प्रस्तुति दे रहे हैं। सुनने के लिए लिंक्स को क्लिक करें।
नीचे लिखे लिंक्स आपके संदर्भ के लिए दिए गए हैं। विभिन्न देशों के कलाकारों द्वारा गाए भजन के लिंक्स महाद्वीपों के अंतर्गत दिए गए हैं। आप जब चाहें अपने पसंद के देशों के नाम पर क्लिक करके ये भजन सुन सकते हैं।
इसका अतिरिक्त लाभ ये है कि आप इस भजन के पीछे इन देशों की संस्कृति को भी अच्छी तरह से अनुभव कर सकते हैं।अलग अलग देशों की प्राकृतिक सुंदरता, परिधान, परिवेश, वाद्य यंत्र, गायन शैली, इतिहास को इस भजन को सुनते-सुनते देख सकते हैं, पहचान सकते हैं। देशाटन, पर्यटन की दृष्टि से भी अधिकतर प्रस्तुतियां दर्शनीय और श्रवणीय हैं।
एशियन कलाकारों द्वारा गाया गया वैष्णो जन तेने कहिए:
मंगोलिया,
जोर्डन,
भूटान,
थाईलैंड, ,
वियतनाम,
चीन,
पाकिस्तान,
दक्षिण कोरिया,
फिलिपिंस,
बहरैन,
मलेशिया,
ओमान,
यूरोपियन कलाकारों द्वारा गाया गया वैष्णो जन तेने कहिए:
आर्मेनिया,
बेलारूस,
सर्बिया,
फिनलैंड,
चेकगणराज्य,
हंगरी,
लीचेंस्टटीन,
स्लोवाकिया,
ऑस्ट्रिया,
आइसलैंड,
आयरलैंड,
स्लोवेनिया,
क्रोएशिया,
तुर्की,
बोस्निया,
एस्टोनिया,
मेसेडोनिया,
अफ्रीकन कलाकारों द्वारा गाया गया वैष्णो जन तेने कहिए :
नाइजीरिया ,
सेनेगल,
अल्जीरिया,
घाना, ,
मोरक्को,
गुयाना,
जीबूटी,
नामीबिया,
केन्या,
मॉरीशस,
मॉरिटानिया,
उत्तरी अमेरिकन कलाकारों द्वारा गाया गया वैष्णो जन तेने कहिए :
दक्षिणी अमेरिकन कलाकारों द्वारा गाया गया वैष्णो जन तेने कहिए:
ऑस्ट्रेलियन महाद्वीप के कलाकारों द्वारा गाया गया वैष्णो जन तेने कहिए:
ऑस्ट्रेलिया,
न्यूजीलैंड,
फिजी,
नौरू ( इसे नौरू के प्रेसिडेंट ने खुद गाया है)
(कुछ देशों के नाम अवश्य छूट गए हो सकते हैं! कृपया गलतियों को जरूर बताएं। धन्यवाद!)
भारत सरकार की इस अदभुत और खूबसूरत भजन को प्रचारित करने की उत्तम सोच और पेशकश को भारत में भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। 🙏🙏🙏