(1) ग्रामोफोन और श्याम सुंदरियां

तवा संगीत: ग्रामोफोन और 78 rpm रिकॉर्ड्स

पंकज खन्ना 
9424810575

(नए पाठकों से आग्रह: इस ब्लॉग के परिचय और अगले/पिछले आलेखों के संक्षिप्त विवरण के लिए यहां क्लिक करें।🙏)


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SGSITS इंदौर से 1983 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद, 1984 से सन 2007 तक हिन्दुस्तान पेट्रोलियम में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत रहते हुए अलग अलग शहरों जैसे बम्बई, नागपुर, चंद्रपुर, रायपुर,बरेली, दिल्ली, और मेरठ में पदस्थ रहा।

कमाना शुरू किया तो बहुत सारी रूचियां बनती और बढ़ती गई जैसे सायकलिंग, मोटर सायकलिंग (पुरानी जावा 1965 मॉडल), घुमक्कड़ी, वनभ्रमण, driftwood (बहकर आयी हुए लकड़ी) संग्रह, फोटोग्राफी, संगीत, लेखन, पठन आदि। 

उन्हीं दिनों में ग्रामोफोन के तवा रूपी  रेकॉर्ड्स(78 rpm वाले,  Shellac या बोले तो पत्थर के रिकॉर्ड्स) संग्रह करने का शौक भी शुरू  हुआ जो अब तक जारी है।ये बहुत ही अलग स्तर का विचित्र शौक है।लोग पूछते हैं की इन रिकॉर्ड्स का क्या करोगे और क्यों इकठ्ठा करते हो। दुनिया करे सवाल तो क्या जवाब दें? 

बस इतना कह सकता हूं कि ये 78 rpm के रिकॉर्ड्स साहित्य, संगीत, और यांत्रिकी की अद्भुत त्रिवेणी हैं। इसमें डूब जाएं तो पूरी तरह से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है। इन रिकॉर्ड्स को हाथ में रखने भर से दिमाग में संगीत बजने लगता है:)

इनका श्याम सौंदर्य, उसमें मुद्रित ध्वनि , इनके लेबल पर लिखे शब्द और नंबर तथा इनके पतले कागज़ के प्रिंटेड कवर पर लिखा इतिहास और तस्वीरें कुछ लोगों को बहुत लुभाते , रिझाते और घूमाते है।सामान्य भाषा में कहें तो ये ऐसी खुजली होती है जो मिटाए नहीं मिटती!  खुजली का तो बस एक ही इलाज है- खुजाओ! 

जिस शहर में भी पदस्थ रहा या जिस भी शहर में भी किसी भी काम से गया तो वहां के कबाड़ी बाजार या पुरानी दुकानों से ये  78 rpm records या तवे या ' ब्लैक ब्यूटीज / श्याम सुंदरियां ' ढूंढता रहा और इकट्ठे करता रहा।उस वक्त ये ध्यान में रहता था की सिर्फ अच्छे बड़े लेबल वाले रेकॉर्ड्स ही खरीदे जाएं और कम से कम खरीदे जाएं। क्योंकि transferable नौकरी के कारण बहुत अधिक संग्रह संभव नहीं था। 


तो बहुत संयम रखने के बाद भी खुजाते रहे और कुछ ही सालों में लगभग 400 रेकॉर्ड्स इकठठा हो गए। जवानी में लगता था की ये तो सिर्फ हमारा ही चरम करम-धरम है और साथ ही साथ ये परम भरम भी पाल लिया की सिर्फ हमारा ही एक हरम है-  'श्याम सुंदरियों' या 78 rpm records का, जिसमे कुछ तो अब शतायु हैं पर जिंदा हैं भले ही नरम गरम हालत में।

पर जैसे जैसे वक्त गुजरता गया तो मालूम पड़ा कि असली संग्रहकर्ता तो सर्व श्री सुमन चौरसिया, सनी मैथ्यूज और सुरेश चांदवनकर जैसे कई माननीय हैं जिनके पास दसियों हजार रिकॉर्ड्स हैं ! हमारे जैसे तो सिर्फ टाइमपास मौसमी जिज्ञासु  हैं जो साल में एक दो बार वार त्यौहार पर ट्रंक खोलकर, रिकॉर्ड निकालकर , सुनकर पुनः सहेजकर रख देते हैं।

इस विषय पर आगे कुछ भी लिखने से पहले इन जैसे आदरणीय  संगीत प्रेमियों और संग्रहकर्ताओं को सादर नमन करता हूं जिन्होंने देश के संगीत की विरासत और धरोहर को अथक प्रयत्नों के साथ जीवित तथा सुरक्षित रखा है।🙏🙏

अब जब थोड़ा पहले ही रिटायरमेंट ले लिया है तो कोशिश रहेगी कि हर हफ्ते किसी न किसी रिकॉर्ड /संग्रहकर्ता /कबाड़ी/ गायक गायिकाओं/ ध्वनि मुद्रण के बारे में जानकारी साझा की जाय। 

इन रेकॉर्ड्स को इकठ्ठा    करने और सुनने के पीछे भी अनेक कहानियां हैं।इस ब्लॉग का उद्देश्य भी यही है कि नई पीढ़ी भी उस पुराने संगीत की मासूमियत,कला और विज्ञान को इन किस्सों द्वारा सुने, समझे और आनंद ले तथा ये सुनिश्चित करे कि ये पुराने रेकॉर्ड्स फिर से कबाड़ी की दुकानों पर ना पहुंचे और ये संगीतमय धरोहर हमेशा बनी रहे - हमारे घरों में या किसी अच्छे संग्रहालय में। 


इनमें से बहुत सारे रेकॉर्ड्स ऐसे हैं जो 1902 से 1930 के बीच में रिकॉर्ड किए गए मतलब फिल्म इंडस्ट्री शुरू होने के भी बहुत पहले। इन रेकॉर्ड्स में कहीं कहीं कर्णप्रिय संगीत का अभाव हो सकता है पर मौलिकता का नहीं। कुछ गानो के बोलों में शायद साहित्यिक मूल्य ना हो पर संदेश, मनोरंजन,गायकी और धरोहर कि कोई कमी नहीं है।

प्रारम्भ में जब भारत में रिकॉर्डिंग शुरू हुई तो पहले दो दशकों में महिला गायिकाएं ही आगे आईं।ज्यादातर गायिकाएं राजाओं/ महराजाओ/रईसों के दरबार में तवायफ थीं।उन्हें उस जमाने के उस्तादों से नृत्य और संगीत का प्रशिक्षण भी मिला करता था।  

ये ब्लॉग समर्पित है तवा और तवायफो को और साथ ही समर्पित है उन गीतकारों, संगीतकारों, वाद्य कलाकरों (विशेषकर तबलची और सारंगिये) को जिनका नाम भी नहीं आता था उन रेकॉर्ड्स पर। उन मजबूर पर हुनरमंद तवायफों के लिए ही इस ब्लॉग का नाम रखा गया है - तवा संगीत ।वैसे भी इन 78 rpm रिकॉर्ड्स को हिंदीभाषी क्षेत्रों में तवा भी कहा ही जाता रहा है।

गौहर जान पहली सिंगर थीं जिनका गाना सन 1902 में सर्वप्रथम रिकॉर्ड किया गया था। उन पर तो काफी कुछ लिखा जा चुका है और बहुत कुछ लिखा भी जायेगा।उस जमाने की सिंगर्स के नाम ऐसे ही हुआ करते थे: 

गौहर जान, काली जान, रहमू जान, मलका जान, बननी जान,जौहरा जान,तमंचा जान, छम्मो जान, मेहबूब जान, चुन्नी जान, किटी जान आदि आदि।

जानकी बाई, अख्तरी बाई, बाई सुंदराबाई, बालाबाई,अक्कुबाई,जद्दनबाई आदि।

बबुआ बेगम,बिब्बो बेगम, गुलजार बेगम, रोशनारा बेगम आदि।

आने वाले posts में इनमें से कुछ नामों पर  चर्चा की जाएगी जिनके रिकॉर्ड्स मेरे पास उपलब्ध हैं।


आज के दौर में संगीत सुलभरूप से बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है। फिर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपना संगीत gramophone या रिकॉर्ड प्लेयर्स पर सुनना चाहते हैं।अब तो फिर से LP's बनना शुरू हो गए हैं और कुछ नए पुराने लोग ग्रामोफोन से ना सही पर रिकॉर्ड प्लेयर्स पर तो सुनना शुरू कर ही चुके हैं।

ग्रामोफोन या रिकॉर्ड प्लेयर्स पर तवे पर सुना संगीत एक अलग स्तर पर ले जाता है जहां आप सिर्फ संगीत सुनते नहीं है बल्कि देखते और अनुभव भी करते हैं। सामान्यतः अब संगीत सिर्फ पृष्ठभूमि या बैकग्राउंड में ही सुना जाता है।लेकिन जब आप संगीत ग्रामोफोन या रिकॉर्ड प्लेयर्स पर सुनते हैं तो संगीत अग्रभूमी या फोरग्रांउड में आ जाता है। और फिर हम संगीत के नोट्स के बीच की शांति को भी अच्छी तरह से समझ सकते हैं। खाना हो या गाना तवा ही श्रेष्ठ है:)

एक रिकॉर्ड बजने के बाद घर में कम्पन से एक प्रकार से कुछ ऐसी स्वर लहरियों को छोड़ जाता है जिसे हम देर तक अनुभव कर सकते हैं।किसी और माध्यम से ये प्रभाव उत्पन्न हो ही नहीं सकता है।


पहले भाग में सिर्फ भूमिका और इतना ही। फोटोग्राफ्स और गाने अगली पोस्ट से।आज के बाद से कोशिश रहेगी हर हफ्ते एक किस्सा:)

पंकज खन्ना 
9424810575

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