(5) ये ना बता सकूंगा मैं!
तवा संगीत(5) : ये ना बता सकूंगा मैं।
पंकज खन्ना (इंदौर)
9424810575
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हमारे पिताजी और पारसी मोहल्ले (जहां हम रहते थे) के अंकल लोग शाम को अक्सर किसी एक घर में इकठ्ठे होकर राजनीति , क्रिकेट, हॉकी, मौसम, मंहगाई, संगीत की 'चौपाल' किया करते थे। और हम बच्चों का क्या ! किसी भी घर में कभी भी घुसे और बस बैठ गए किसी की भी गोदी में! सुनते रहते थे।
संगीत की बातों की पहली यादें सन 1970 के आस पास की हैं । तब उम्र थी 8 साल। ये बड़े लोग जो नाम लेते थे अच्छी तरह याद हैं, वो हैं : के एल सहगल, पंकज मलिक, नूरजहां, सुरैया,तलत मेहमूद, हेमंत कुमार , मन्ना डे, लता, रफी, मुकेश, किशोर और जगमोहन आदि आदि।हमारे घर में ग्रामोफोन या रिकॉर्ड प्लेयर तो नहीं था पर रेडियो जरूर था। रेडियो तो हर घर में बजता था विविध भारती भी और रेडियो सिलोन भी । और इन सब गायकों के गाने भी बजते रहते थे। बड़ों को अच्छे लगते थे तो हमें भी अच्छे लगने लगे।
बचपन से सुन सुन कर कई गाने दिल में घर कर गए। उन गानों में एक गाना था रेडियो सिलोन पर कभी कभी बजने वाला गाना जिसे गाया था पद्मश्री जगमोहन सुरसागर ने:
दिल को है तुमसे प्यार क्यों, ये ना बता सकूंगा मैं।*
( इसे सुनने के लिए यहां क्लिक करें।)
1985 के आस पास नागपुर में रिकॉर्ड्स इकठ्ठा करना शुरू किया तो बाकी सब के कुछ कुछ रिकॉर्ड्स तो मिलते गए पर जगमोहन के गानों का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। क्योंकि जगमोहन के गाने गैर फिल्मी होते थे और कम चलते थे। जगमोहन का कैसेट सुरसागर भी बहुत ढूंढने के बाद 1987 में मिला था। पर हमें तो तवा चाहिए था तवा वो भी 78 RPM वाला!
संगीतप्रेमी संग्रहकर्ता अपनी खुद की पसंद के गानों के रिकॉर्ड्स , कैसेट्स, CD के लिए सालों से पीछा करते रहे हैं या Chase करते रहे हैं। हमने भी यही किया। सन 1998 तक कोई सफलता नहीं मिली।
हम इस तवे का पीछा कर रहे थे और ये गाना हमारा पीछा कर रहा था। इसी गाने को पसंद करने वाले कई लोग अलग अलग शहरों में अलग अलग सालों में मिले। HPCL में एक थोड़े दिनों के लिए दोस्त बने, नाम था… छोड़ो नाम में क्या रखा है। ये HR Department में थे और फिर भी मानवीय संवेदनाएं रखते थे! लिहाजा उनकी उनके विभाग में कोई खास इज़्ज़त नहीं थी!! इन्होंने आगरा में ये गाना गा कर सुनाया था। बहुत बेसुरा गाया था। पर फिर भी हम दोनों मिलकर बहुत प्रसन्न हुए थे आगरा में ! अब ज्यादा मत सोचने लगो। हम आगरा के HPCL Office की बात कर रहे हैं! पूरा यकीन है कि ये ब्लॉग उनको फिर से ढूंढ लेगा और उनका फोन मुझे जल्दी ही आएगा।
फिर एक बहुत बड़े GM थे, रसिक बलमा के नाम से जाने जाते थे, नाम नहीं लूंगा, केस कर देंगे! पर ये 'पाठयक्रम के अतिरिक्त होने वाली गतिविधियों' के लिए ज्यादा प्रसिद्ध थे। ज्यादा क्या लिखूं! इन्होंने जीवन में सिर्फ एक ही अच्छा काम किया कि दिल्ली में एक पार्टी में जगमोहन का ये गाना बहुत अच्छे से गा दिया। हमने इनके सारे खून माफ कर दिए!
एक बार सन 1998 में भोपाल से रायपुर ट्रेन से जा रहे थे तो एक अशोक वर्मा जी नाम के व्यक्ति से मुलाकात हुई जो भोपाल से नागपुर तक की यात्रा कर रहे थे। ये ट्रेन में बैठे बैठे गुनगुना रहें थे: दिल को है तुमसे प्यार क्यों, ये ना बता सकूंगा में! सुनते ही हम तो उछल गए! उनसे रिक्वेस्ट की तो उन्होंने पूरा गाना गा कर सुनाया और क्या खूब गाया!
वो हमारी ही उम्र के थे और पुराने गानों के बहुत शौकीन थे।
इन्होंने पंकज मलिक और जगमोहन के एक दो गाने और सुनाए। बातों बातों में उन्होंने बताया कि वो मेरठ के जवाहर क्वार्टर्स के रहने वाले थे। रात हो चुकी थी, सब सो गए। सुबह सुबह वो नागपुर के लिए उतर गए। और हम रायपुर के लिए बैठे रहे।
बाद में सन 2003 में हमारा ट्रांसफर हो गया मेरठ। जवाहर क्वार्टर्स में इनका घर ढूंढा। बड़ी मुश्किलों से घर तो मिल गया पर ये ना मिले। मालूम पढ़ा कि घर छोड़कर बॉम्बे जा चुके थे । उम्मीद है कभी ये ब्लॉग उन तक भी पहुंचेगा।
फिर लौटते हैं छत्तीसगढ़ के रायपुर की ओर। छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया। नोनी बाबू पढ़े चलव, आगे आगे बड़े चलव।
सन 1999 में हमारे खबरिए Cheapjack ( लेख no. 2 में इनका जिक्र है) से खबर लगी कि रायपुर के सदर की एक छोटी गली में कोई गरग (गर्ग) साब हैं जो कपड़े की दुकान करते हैं और अपने पुराने तवे बेचना चाहते हैं सिर्फ संग्रहकर्ताओं को। उनकी दुकान पर धावा बोल दिया।
पाजामा कुर्ता धारी गरग साहब धर्म-भीरू खुशमिजाज बुजुर्ग थे जो चाहते थे कि उनके जीवन काल में ही तवे ठिकाने लगा दिए जाएं क्योंकि उनके बच्चे इनमें रुचि नहीं रखते थे। हमारा तवाप्रेम उन्हें अच्छा लगा। खरीदना कम बातें ज्यादा हुईं। हमें पुराने जमाने वाली गद्दी की बैठक में आराम से बैठा दिया गया।
करीब 200 तवे और 100 LP (Vinyls) बिकने को तैयार थे। LP खरीदने का तो सवाल ही नहीं था। तब तवाबाज़ (ये नाम तवा संग्रहकर्ताओं के लिए रखा है) LP को बहुत ही हेय दृष्टि से देखते थे। लेकिन अब तो तवाबाज़ LP भी खरीदते हैं बड़े शौक से।खैर,देखते ही देखते कुछ तवे खरीद लिए।
उनसे पूछा जगमोहन के रिकॉर्ड और उपरोक्त गाने के बारे में।सुनते ही उनका चेहरा चमक उठा, बोले इन्ही में होगा। मिलकर ढूंढे, पर नहीं मिला। जब नहीं मिला तो थोड़े मायूस हुए और बोले : "रिकॉर्ड तो नहीं मिल रहा है , इधर उधर हो गया होगा। कोई बात नहीं, मैं ये गाना तुम्हें गा के सुना देता हूं!" हम तो एकदम निशब्द हो गए ,अच्छी तरह से पसर गए और उन्हें एकटक निहारने लगे!
उन्होंने आंखे बंद करके दिल से गाना गाना शुरू किया। उनके आगे के दो हिलते दांत होंठों से मिलकर एक अद्भुत दृश्य और श्राव्य पैदा कर रहे थे। स्वर तो ऐसा मानो साक्षात जगमोहन सामने प्रकट हो गए हों। एक जोड़ी आंखे नम थीं। दूसरी जोड़ी भी तुरंत जुगलबंदी में नम हो गईं। गाना खतम हो गया था, गले रुंधे पड़े थे, आवाज़ बंद थी। थोड़ी देर तक बेवजह पास में रखे तवों से खेलते रहने के बाद थोड़ा सामान्य हुए और फिर जाकर बोल फूटे। संगीत की शक्ति अथाह है उस दिन सही मायने में समझ आया। तीन मिनट का दिल से गाया गाना सालों की खोज को सार्थक कर सकता है। अब ये तवा मिलता है या नहीं इसका कुछ मतलब ही नहीं बचा था। विश्वास कीजिए जीवन में आज तक इससे बढ़िया लाइव परफॉर्मेंस कभी देखा ही नहीं।🙏🙏🙏🙏
अंत में उन्होंने वादा किया कि जगमोहन का रिकॉर्ड ढूंढ कर रखेंगे और कहा एक दो हफ्ते में कभी भी आ जाना।
तीन चार हफ्ते बाद फिर उनकी दुकान पर पहुंचे। गरग साहब के पुत्र से मुलाकात हुई। उन्हें परिचय दिया। हमारी नजर गरग साब को ढूंढते हुए खाली निधानी (Shelf) पर पढ़ी तो वहां उनकी तस्वीर लगी थी।चौंक गए बुरी तरह और कुछ बोल पाते उसके पहले ही वो बोले पिताजी तो नहीं रहे पर आपके लिए एक रिकॉर्ड आपके जाने के अगले दिन ही ढूंढ कर निकाला था और उसे अलग से रख दिया था।
उन्होंने तवा निकाला और हमें दे दिया। कुछ सूझ ही नहीं पड़ रहा था क्या बोलें। फिर भी सकुचाते हुए पूछ ही लिया कि कितने पैसे हुए तो उन्होंने दोनों हाथों को पकड़ लिया और सुबकने लगे और बोले ये तो आप ही का है।
हमारी नज़रों को बार बार निधानी पर जाते देखकर बोले सारे तवे घर भिजवा दिए हैं। अब नहीं बेचेंगे!
दोनों वहीं बैठ गए हाथ पकड़ कर और फिर क्या क्या बातें हुईं - ये ना बता सकूंगा मैं!🙏🙏🙏🙏🙏
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*इस गीत के बोल नीचे लिखे हैं। गीतकार हैं फैयाज हाशमी और संगीतकार हैं कमल दासगुप्ता।
दिल को है तुमसे प्यार क्यों
ये न बता सकूँगा मैं
ये न बता सकूँगा मैं
दिल को है तुमसे प्यार क्यों, प्यार क्यों
(पहले मिलन कि छाँव में
तुमसे तुम्हारे गाँव में ) - २
आँखें हुईं थी चार क्यों
ये न बता सकूँगा मैं
दिल को है ...
(तुमको नज़र में रख लिया,
दिल में जिगर में रख लिया ) - २
खुद मैं हुआ शिकार क्यों
ये न बता सकूँगा मैं
दिल को है ...
(रूप की कुछ कमी नहीं
दुनिया में इक तुम्हीं नहीं ) - २
पर मैं तुम्हारी याद में
रहता हूँ बेक़रार क्यों
ये न बता सकूँगा मैं
दिल को है …
फैयाज हाशमी के लिखे गीत गजलों को सबसे बढ़िया जगमोहन ने ही गाया है। फैयाज हाशमी के लिखे इस गीत या गजल में एकदम सीधे साधे हिंदी या उर्दू शब्दों का चयन किया गया है। यही कारण है की ये गीत सीधे दिल तक सेंध मारता है। ये जादू है सादगी का।
इस गीत को समझने के लिए किसी शुद्ध हिंदी या उर्दू की कोचिंग क्लास में जाने की जरूरत नहीं है। जितने सीधे ,साधे, सच्चे शब्द फैयाज हाशमी के उतना ही सच्चा मधुर संगीत कमल दासगुप्ता का। फिर आवाज़ के बारे में क्या कहें। ये तो हैं ही सुरों के सागर: सुरसागर जगमोहन!🙏🙏🙏🙏
पंकज खन्ना
9424810575