(13) ताड़ोबा और घोड़ा-छाप गाने।
तवा संगीत: (13) ताडोबा और घोड़ा-छाप गाने!
पंकज खन्ना, इंदौर
9424810575
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मोहल्ले में भारत के विभाजन की भीषण विभीषिका झेले बहुत सारे पंजाबी परिवार भी रहते थे। घरों का काम निपटा कर मोहल्ले की पंजाबी और अन्य जनानियां एक जगह इकठ्ठे होकर चारपाईयों पर मस्त पसर जाती थीं और सरसों, मेथी, पालक के पत्ते छांटते-छांटते; मुसलसल हिंदी/पंजाबी में हंसी-ठठ्ठा करती थीं।एक दूसरे को पीठ-पीछे अजीब से नामों से बुलाती थीं जैसे टालवाली, पीपेवाली, चड्डी, खन्नी, हकसरनी, शुक्ली, चिलकनी, तांगेवाली आदि। तांगेवाली जी के पति तांगा हांका करते थे और ये गप्पेँ। मोहल्ले में दोनों ही हिट थे।
मोहल्ले के कुछ बच्चे तांगे में सेंट पॉल स्कूल जाया करते थे और ज्यादा बच्चे समीपस्थ जगन्नाथ स्कूल पैदल जाया करते थे। हम तो तभी से तांगों और घोड़ों से सम्मोहित हैं।
बचपन में हर बच्चे से पूछा जाता है की बड़े होकर क्या बनोगे! हमारा 7-8 साल की उमर में एक ही उत्तर होता था- तांगेवाला! बढ़े-बूढ़े सुनकर हंसते थे तो हम भी खुश हो जाते थे। तांगेवाला तो नहीं बन पाए पर इनके ऊपर कुछ लिखना तो बनता है।
घर के पास ही एक तांगा स्टैंड हुआ करता था, जहां सन 72-73 तक 1-2 तांगे खड़े रहते थे।बाद के सालों में तो तांगों का चलन सिर्फ राजबाड़ा क्षेत्र तक सीमित हो गया। दिन में दो चार बार तो इन घोड़ों और तांगों से रूबरू होते थे और निहारते थे। हम लोगों की भाषा और तांगे वालों की भाषा में काफी अंतर होता था। अब याद करते हैं तो ऐसा लगता है कि इनकी भाषा कुछ-कुछ टेंपो वालों की भाषा के समान होती थी। पर इनकी चाल-ढाल, चाबुक लहराने की अदा और घोड़ा-घोड़ी से संवाद बहुत ही मनोरंजक होता था। टेंपो वाले इन तांगे वालों से सीखकर ही आगे बड़े थे। कुछ तांगे वाले गाने गाते हुए तांगा चलाते थे। कौनसे गाने गाते थे, ये तो याद नहीं है, लेकिन वो जो भी गीत गाते थे नीचे दी गई लिस्ट* के बाहर के तो शायद नहीं ही होंगे।
पूरे शहर के समान , GPO चौराहे से छावनी चौराहे के बीच में भी काफी तांगे चला करते थे। घोड़े की टाप सुनते ही कुछ बच्चे हल्ला मचाते , माहौल बनाते हुए तांगे के पीछे भागते थे। इन तांगों के पीछे-पीछे भागना और कुछ सेकंड्स के लिए तांगे के पायदान पर चढ़ जाना ; एक खतरनाक पर पसंदीदा खेल था! खतरनाक कई कारणों से था: आप गिर सकते हो, आप पर रिवर्स गियर में चाबुक बरस सकता है और चुगलखोर बड़े बच्चे आपको घर पर पिटवा सकते हैं। पर ये असली रोडीज़ कहां मानने वाले थे!? पिटे तो पिटे, गिरे तो गिरे, चाबुक पड़े तो पड़े पर खेला तो होबे!
कुछ बच्चे खेल-खेल में भी हाथ में नकली चाबुक लेकर तांगा चलाने वाला बनना पसंद करते थे न कि मोटर गाड़ी वाहक। वहीं तांगा स्टैंड पर घोड़ों को लिटाकर उनके खुरों में नाल ठोकने का काम भी किया जाता था। एक बार देखा था। उसके बाद कभी देखने की हिम्मत नहीं हुई! लेकिन ये सच है कि नई नाल लगे घोड़ों की दुलकी चाल ( Horse Trot) और दुलकी चाल का संगीत बहुत ही मनभावन और कर्णप्रीय लगता था। ( PETA वाले माफ करें, बस बचपन में जैसा देखा था वैसा वर्णन कर दिया।)
घर के पास स्थित नेहरू स्टेडियम के पास तांगों की कभी-कभी रेस भी हुआ करती थी। उसे देखना तो हमारे कोर्स में था! वैसे ही तांगों का सालाना रजिस्ट्रेशन भी स्टेडियम के पास ही हुआ करता था। सजे-धजे सैकड़ों तांगों को एक साथ देखना बहुत अच्छा लगता था। जब भी देश-विदेश में म्यूजियम में घोड़ा-गाड़ी देखे तो अच्छा तो बहुत लगा पर बचपन के वो रंग-बिरंगे चलते-फिरते तांगे और जीवंत तांगेवालों की बात ही कुछ और थी।
जब 14-15 साल के हुए तो समझ आया कि वो घोड़े के पदचाप का संगीत, या दुलकी चाल का संगीत ही था जो तांगेवालों तक खींचकर ले जाता था। होश संभालने के बाद सबसे पहला प्यार किसी संगीतकार से हुआ तो वो ओ पी नैय्यर ही थे जिनके गानों में ये घोड़े की टाप साफ-साफ सुनाई देती थी। इन्हीं के संगीतबद्ध किए उन गानों को हम प्यार से घोड़ा-छाप गाने कहते आए हैं जिनमें घोड़े भी हों और घोड़ों की दुलकी वाली मधुर टाप भी हो। वैसे तो इनके पहले और बाद में भी घोड़ा-छाप गाने बने पर इस विधा में तो कोई इनका सानी नहीं है।🙏
क्योंकि पारसी अंकल ( बटक के अंडे और कौए का शिकार वाले) के पास दो ग्रामोफोन थे एक भोंपू वाला और दूसरा पोर्टेबल डब्बे वाला तो हमने भी नौकरी करने के बाद दो वैसे ही ग्रामोफोन खरीदे । भोंपू वाला घर के लिए और पोर्टेबल वाला (Dadaphone) जंगल भ्रमण के लिए! इसकी फोटो नीचे लगाई है। अब बहुत जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त कर चुका है। चाहता है कि खुद की जीवनी लिखे। देखते हैं!
सन 1984 से सन 1994 तक बंबई/नागपुर/ चंद्रपुर में रहे थे। जंगल घूमने की लत तो शुरू से लग गई थी। कई बार नवागांव अभ्यारण्य, नागजीरा अभ्यारण्य, चिखलधरा, मेलघाट, ताडोबा नेशनल पार्क, तोतलादोह, पेंच अभ्यारण्य आदि स्थानों पर जाया करते थे। जब 1990 में चंद्रपुर आ गए तो ताडोबा नेशनल पार्क के बिल्कुल नजदीक, लगभग 50 किलोमीटर दूर, पहुंच गए।
चंद्रपुर आकर जीतू भाई, गिट्टू भाई और कई अन्य वन्य-प्रेमी दोस्त भी बन गए।बहुत सारे जंगली एक साथ इकठ्ठा हो गए। और फिर यहां आकर दो शौक आपस में मिल गए: वन-भ्रमण और तवा-संगीत। उन दिनों महीने में कम से कम से दो बार ताडोबा जाना होता ही था। शनिवार रात को पहुंच जाते थे। रविवार की रात को लौटते थे। जीतू भाई गेस्ट हाउस, खाने और महूए की पहली धार की बगैर नौसागर मिली दारू का इंतजाम सईसाट ऑनसाइट कर दिया करते थे। 1994 तक ताडोबा की एंट्रेंस टिकट के 2 रुपए, स्कूटर/बाइक पार्किंग के 2 रुपए, कार/ जीप पार्किंग के 5 रुपए और गेस्ट हाउस के 50 रुपए लगते थे!जी हां, हम ताडोबा कई बार स्कूटर और बाइक पर भी गए। तब इसकी अनुमति थी।
जीवन में एक हसरत रही है कि कभी जंगल में तांगे या घोड़ा गाड़ी में बैठकर भी जाएं और सुकून से घोड़े की दुलकी चाल का संगीत सुनें और वन-दर्शन करें। चंद्रपुर छोटा सा शहर था। जंगलात विभाग वालों से भी जल्दी ही दोस्ती टाइप का परिचय हो गया था। चंद्रपुर में एक घोड़ा-गाड़ी वाला बड़ी मुश्किल से घोड़ा-गाड़ी ताडोबा ले जाने के लिए तैयार भी हो गया था। लेकिन जंगलात विभाग वालों ने 'दोस्ती' को दुलत्ती मार दी और परमिशन नहीं दी!
वो अंग्रेजों का जमाना भी क्या रहा होगा। तांगा या घोड़ा-गाड़ी लेकर पहुंच गए जंगल में! जंगल के सन्नाटे में घोड़े की टाप! टाप!! टाप!!! ये हसरत तो इस जन्म में पूरी होने से रही! हमारा 43 साल पुराना कॉलेज का दोस्त कमलेश कुछ चमत्कार कर दिखाए तो बात अलग है!
लेकिन अगर असली घोड़ों की टाप जंगल में न सुन सके तो क्या हुआ!? घोड़ा-छाप गाने कुत्ता-छाप तवों पर जंगल में भी तो सुन सकते हैं!
दोस्त लोग बाईयों, जानों और देवियों के गाने बिल्कुल झेल नहीं पाते थे पर जंगल में कैसेट्स से भी गाने सुनना नहीं चाहते थे। तो फिर हमने कुछ बहुत प्यारे घोड़ा-छाप गानों को हमारे संग्रह से बड़े जतनों से छांट के निकाला । ये 'नए' टाइप के तवे साथ रखे जो सभी को पसंद आते थे जैसे:
चले पवन की चाल (डॉक्टर 1941,पंकज मलिक ) ,
उड़न खटोले पे उड़ जाऊं (अनमोल घड़ी 46,नौशाद ) ,
पिया पिया पिया मेरा जिया ( बाप रे बाप 1955, ओपी) ,
हल्के हल्के चलो ( तांगेवाली 1955 सलिल चौधरी ) ,
ये है बॉम्बे मेरी जान ( सीआईडी 1956,ओपी नैय्यर )
यूं तो हमने लाख.. (तुमसा नहीं देखा 57,ओपी नैय्यर),
मांग के साथ तुम्हारा (नया दौर 1957,ओपी नैय्यर)
मैं रंगीला प्यार का राही(छोटी बहन 59 शंकर जयकिशन)
हौले हौले ( सावन की घटा 1966,ओपी नैय्यर)
ऐसे 15-20 तवों का एक बॉक्स ही तैयार कर लिया था। Dadaphone टॉकिंग मशीन और ये बॉक्स कई बार हमारे साथ ताडोबा गए। एक मित्र था जो कार्यवश नांदेड़ बहुत अधिक जाया करता था। उनका नाम ही पड़ गया नांदेड़। नांदेड़ बहुत प्रतिभाशाली है। उसने हम सबको दुलकी चाल का नृत्य सिखा दिया। वो दोनों हाथों में कोल्हापुरी चप्पल, और पैर में चमड़े के जूते डालकर घोड़ा बन जाता था। पहले उल्टा पैर और सीधा हाथ आगे करता और फिर दूसरा सेट। और पूरे हाल में घोड़े की चाल चलता रहता था, बजता रहता था! बस तैयार हो गई संगीतमय दुलकी चाल या Horse Trot!
आप ऊपर के किसी भी गाने के साथ घोड़ा बनकर हाथों और पैरों में कड़क चप्पल पहन कर संगीत उत्पन्न करके देखें! मजा नहीं आए तो पैसे वापिस!! वो गाना 'मेरे पैरों में घुंगरु बंधा दे' भी फेल है इस नृत्य-गीत के प्रभाव के आगे! आप चाहें तो ऐसे भी गा सकते हैं: मेरे हाथों में चप्पल पहना दे! ताडोबा में तो हम ऐसे ही गाते थे!
लखी थोड़ा लचक के चलता था। उसके लक्षण भी थोड़े लटके-झटके वाले थे।सब उसको लखी-लंगड़ा या लुच्चा-लखी कहते थे। था तो लंगड़ा पर ज्यादा तेज चलता था वो! एक रात ज्यादा सेवन कर लिया उसने। सुबह तक झूम रहा था और जैसे ही जूते पहनने लगा उसके जूते में से एक काला जिंदा सांप का बच्चा बाहर झांकने लगा, जैसे गाना सुन रहा हो: तन डोले मेरा मन डोले... । सांप ने उसकी महुआ उतार दी और लखी ने अपना गुस्सा उतार दिया नांदेड़ पर! नांदेड़ की कोई गलती नहीं थी! पण अपन कायकू बीच में बोलें!;)
ये सब कल की ही बातें लगती हैं। सच में जिंदगी में घोड़े लगे हुए हैं। जिंदगी तेज गति से भागती जा रही है।जवानी शॉर्ट कट मार चुकी है; बचपन के बाद सीधे बुढ़ापा आ गया है! चार दिनों की जिंदगी चौथे दिन में प्रवेश कर चुकी है। जिंदगी का प्रोजेक्ट पूरा हो रहा है। हमने तो प्रलेखन/ दस्तावेजीकरण/डॉक्यूमेंटेशन शुरू भी कर दिया है। लाइफ नाम का प्रोजेक्ट अच्छा ही रहा है अभी तक। आप लोगों की दुआ रही तो डॉक्यूमेंटेशन भी ठीक-ठाक हो जाएगा। फिर मिलेंगे अगले हफ्ते!! तब तक सुनते रहें असली घोड़ा-छाप गाने!🙏🤗
पंकज खन्ना, इंदौर
9424810575
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* घोड़ा छाप गानों की लिस्ट
You Tube पर तांगे के चक्र और घोड़े ढूंढते-ढूंढते सर बुरी तरह चक्करघिन्नी हो गया है भिया इस बार तो।तवे का चक्र। तांगे का चक्र।अशोक चक्र। झंडे में चक्र। शरीर में चक्र। अभिमन्यु का चक्र। चक्रों का चक्र।जीवन चक्र। काल चक्र। अब तो माथे में भी चक्र बैठ गया है! बहुत चक्कर हैं चक्र के । ज्यादा मत सोचो चकरा जाओगे, घनचक्कर बन जाओगे! बस तांगे के चक्र को देखो और नीचे दिए घोड़ा-छाप गाने (सन 1985 तक के) सुनो पूरे एक हफ्ते तक।🙏
(1) चले पवन की चाल (डॉक्टर 1941) पंकज मलिक
(2) जिंदगी है प्यार से...(सिकंदर 1941) रफीक गजनवी
(3) उड़न खटोले पे उड़ जाऊं (अनमोल घड़ी 46) नौशाद
(4) बचपन के दिन भुला न देना (दीदार 1951) नौशाद
(5) दिल में छुपा के प्यार का तूफान (आन 52) नौशाद
(6) मस्त बहार है ( सुरंग 1953) शिवरामकृष्ण
(7) मेरा घोड़ा बड़ा है निगोड़ा ( परिचय 1954) वेद पाल
(8) पिया पिया पिया मेरा जिया ( बाप रे बाप 1955) ओपी
(9) हल्के हल्के चलो ( तांगेवाली 1955) सलिल चौधरी
(10) देखो तांगा मेरा निराला (तांगेवाली 55) सलिल चौधरी
(11) मेरा सलाम लेजा (उड़न खटोला 1955) नौशाद
(12) ये है बॉम्बे मेरी जान ( सीआईडी 1956) ओपी
(13) आजा रे आजा ना पिया ( छूमंतर 1956 ) ओपी
(14) यूं तो हमने लाख.. (तुमसा नहीं देखा 57) ओपी
(15) मांग के साथ तुम्हारा (नया दौर 1957) ओपी
(16) ये क्या कर डाला तूने (हावड़ा ब्रिज 1958) ओपी
(17) भीगा भीगा प्यार का समां (सावन59) ह. बहल
(19) मैं दीवाना मस्ताना ( चालीस दिन 1959) बाबुल
(20) कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर160) नौशाद
(21) सच कहता हूं (जाली नोट 1960) ओपी नैय्यर
(22) ओ पवन वेग से (जय चित्तौड़ 61) एसएन त्रिपाठी
(23) चलते ही जाना...(उसने कहा था 61) सलिल चौ.
(24) घोड़ा पिशोरी मेरा (प्यार का बंधन 1963) रवि
(25) बंदा परवर ....(फिर वो ही दिल लाया हूं 1963) ओपी
(26) हमकदम हमसफर (निशान 1965) उषा खन्ना
(27) अजी पहली मुलाकात (दो दिलों की दास्तान 66)ओपी
(28) मैं सूरज हूं (दिल ने फिर याद किया 66) सोनिक ओमी
(29) हौले हौले ( सावन की घटा 1966) ओपी नैय्यर
(30) चल बेटा लेफ्ट चल बेटा (दो दिलों की दास्तान 66) LP
(31) उसको नहीं देखा ( दादी मां 1966) रोशन
(32) जाने मेरा दिल किसे ढूंढ (लाट साहब 67) शंकर-जय
(33) ओ यारों की तमन्ना है (कहीं दिन कहीं. 68) ओपी नैय्यर
(34) मैंने तुझ से किया है प्यार (खोज 71) उषा खन्ना
(35) ठाप ठीप ठाप ( तांगावाला 1972) नौशाद
(36) कोई हसीना जब रूठ ( शोले 1975) आरडी बर्मन
(37) मैं बाबू छैला ( छैला बाबू 1977) लक्ष्मी प्यारे
(38) सोनियो मखनो ( दाज 1977) एस मोहिंदर
(39) मेरे संग संग आया तेरी यादों (राजपूत 82)लक्ष्मी प्यारे
(40) दुनिया छूटे यार न छूटे ( धर्मकांटा 1982) नौशाद
ऊपर दिए घोड़ा-छाप गानों के अलावा भी कई गाने ऐसे हैं जिनमें घोड़े हैं और मधुर संगीत है पर घोड़े की टाप वाला या दुलकी चाल वाला संगीत नहीं है। ऐसे थोड़े से गानों की लिस्ट नीचे दी गई है:
(1) घटा घनघोर घोर ( तानसेन 1943) खेमचंद्र प्रकाश
(2) नाचे घोड़ा नाचे (चंद्रलेखा 1948) एस राजेश्वर राव
(3) दो दिन की बहार प्यारे लता( दुलारी 1949) नौशाद
(4) सुन बैरी बलम बोल ( बावरे नयन 1950) रोशन
(5) खेत मेरे बाबुल का (मंगला 50) कला, शास्त्री और पार्थ
(6) मैं राही भटकने वाला हूं (बादल 1951) शंकर-जय
(7) वंदे मातरम ( आनंद मठ 1951) हेमंत कुमार
(8) धीरे समीरे तटनी तीरे ( आनंद मठ 1951) हेमंत कुमार
(9) लेलो लेलो फूलदानी लेलो (जादू 1951) नौशाद
(10) इंसान बनो कर लो भलाई (बैजू बावरा 1952) नौशाद
(11) बचपन की मोहब्बत को (बैजू बावरा 1952) नौशाद
(12) आज मेरे मन में.. ( आन 1952) नौशाद
(13) मान मेरा अहसान ( आन 1952) नौशाद
(14) धरती से दूर गोरे बादलों में (संगदिल 52) स.हुसैन (15) ये जिंदगी उसी की है (अनारकली 1953) सी रामचंद्र
(16) मुझे देखो हसरत की तस्वीर हूं (बाज़ 1953) ओपी
(17) मैं गरीबों का दिल ( आबे हयात 55) सरदार मलिक
(18) कितना हसीं है मौसम ( आजाद 1955) सी रामचंद्र
(19) चले सिपाही धूल उड़ाते मन्ना डे (राजहठ 56) शंकर-जय
(20) में तो हूं हीर का दीवाना ( हीर 56) अनिल बिस्वास
(21) तुम्हारे संग में भी चलूंगी (सोहनी महिवाल 58) नौशाद
(22) ये समां है मेरा दिल (स. चंद्रगुप्त 58) क. वीरजी शाह
(23) तुम सैंया गुलाब के फूल ( नवरंग 1959) सी रामचंद्र
(24) है आग हमारे सीने में (जिस देश में गंगा..60)शंकर जय
(25) तुम जो आओ तो (सखी रोबिन 62) रोबिन बैनर्जी
(26) हाथों में हाथ ( दूर की आवाज 1964) रवि
(27) जाने वाले जरा होशियार (राजकुमार 64) शंकर जय
(28) ए नर्गिसे मस्ताना (आरजू 65) शंकर जयकिशन
(29) एक था गुल और एक (जब जब फूल खिले 1965) KA
(30) आज उनसे पहली मुलाकात (पराया धन 71) आरडी
(31) घोड़ी पे होके सवार ( गुलाम बेगम बादशाह 73) KA
(32) में हूं घोड़ा ये है गाड़ी ( कुंवारा बाप 1974) रा.रोशन
(33) मैं गलियों का राजा (धर्मवीर 1977) लक्ष्मी प्यारे
(34) ओ मेरी महबूबा (धर्मवीर 1977) लक्ष्मी प्यारे
(35) सात अजूबे इस दुनिया में (धर्मवीर 1977) लक्ष्मी प्यारे
(36) राजू चल राजू ( आजाद 1978) आरडी बर्मन
(37) लकड़ी की काठी (मासूम 1983) आरडी बर्मन
उपरोक्त दोनों लिस्टें अंतिम नहीं कही जा सकती हैं। कोई भी गाना जो छूट गया हो, आपको याद आ जाए तो कृपया यहीं कमेंट्स में लिख दीजिए। लेकिन गाना पुराना ही हो, 1985 से पहले का! 🙏🙏🙏