(12) मेरठ के कबाड़ी बाजार में Disco!
तवा संगीत: (12) मेरठ के कबाड़ी बाजार में Disco !
पंकज खन्ना, इंदौर
9424810575
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थोड़ा एडजस्ट हो गए तो अपनी औकात पे आ गए और सहकर्मियों से मेरठ के खान-पान के अड्डों के बारे में, आसपास के पर्यटन के बारे में जानकारियां जुटाना शुरू कर दिया। पर्यटन और खान-पान हो गया, बस अब संगीत बचा था।
एक दिन ऑफिस में छः सात सहकर्मियों के साथ खाना खाने के दौरान ये पूछ लिया कि मेरठ में कबाड़ी बाजार कहां है। ये सुनते ही एक ने सब्जी थाली में डालने के बजाए अपनी पेंट पर गिरा दी। दूसरे ने हमें ऊपर से नीचे तक स्कैन कर डाला। तीसरा मस्त मौला मंदमंद मुस्काते, मुंडी मटकाते, मजे मारने लगा! चौथा धीरे धीरे मंत्रोच्चारण करते हुए अपने कानों को बार-बार छूने लगा!
पांचवे सहकर्मी जो थोड़े बुजुर्ग थे, बाजू में बैठे थे, सरक गए जगह से भी और दिमाग से भी। बड़ी तल्खी से पूछने लगे कि आपका बच्चा कितना बड़ा है, जी?
कुछ जवाब दें उसके पहले ही हम उम्र साथी अधिकारी ने पूछा: "कबाड़ी बाजार!?"
हम: "हां भाई, कबाड़ी बाजार!"
साथी अधिकारी: "कबाड़ी बाज़ार जाओगे?"
हम: "हां भाई जरूर जायेंगे, इसमें क्या बुराई है? तुम भी चलो ना, बड़ा मजा आएगा।"
साथी अधिकारी जोर से बोले: "तुम्हें शर्म नहीं आती?"
इतना सुनने और उनका रौद्र रूप देखने के बाद सभी धीरे धीरे वहां से खिसक गए।बस वो ही रह गए हमारे साथ।
उन्होंने अति उच्च स्वरों में नसीहत दी: "भाड़ में जाओ हमारी बला से! अगर वहां जाना ही है, तो शांति से हो आओ! दुनिया को क्यों बता रहे हो!? हमें क्यों धकेल रहे हो!?"
हम सहम गए और खिसिया के बोले- "भाई, हम तो सन 1984 से जहां भी पोस्टेड रहे वहां के कबाड़ी बाजार जाते रहे हैं। 78 rpm वाले पुराने रिकॉर्ड्स (तवे) खरीदने के लिए। सोचा मेरठ में भी कबाड़ी बाजार से कुछ रिकॉर्ड खरीद लें। कबाड़ी बाजार तो हर शहर में होता है। ये कब से इतना बुरा काम हो गया!?"
ये सुनते ही उनके चेहरे के भाव बदल गए, अब वो कम डरावने दिख रहे थे! तनी हुई भृकुटियां शिथिल होकर सामान्यवस्था में लौट आईं, पहले थोड़ा सा मुस्कुराए और फिर वो जोर-जोर से हंसने लगे। थोड़ी देर बाद हंसते-हंसते बोले: "मेरठ का Red Light Area कबाड़ी बाज़ार कहलाता है!" अब हमें समझ ही नही आ रहा था कि हँसे या रोएं! और वो अट्टहास करते रहे रावण के समान! मेरठ है ही रावण का ससुराल!
अगले दिन लंच टाइम तक सबको समझ आ गया था कि कोई शौक रिकॉर्ड इकठ्ठा करने का भी होता है। एक अधिकारी को Vocabulary Building का बहुत शौक था। उन्होंने पूछा की इस शौक को अंग्रेजी में क्या कहते हैं। उन्हें बताया कि रिकॉर्ड संकलन करने वाले को Discophile कहते हैं और इस शौक को Discophilia कह सकते हैं। अब किसीने पूछ लिया कि रिकॉर्ड इकठ्ठे करने वाले को हिंदी में क्या कहते हैं तो हमने बस ऐसे ही कह दिया : "तवाबाज़। और तवे इकठ्ठे करने के शौक को कहते हैं: तवाबाजी!" अब जब बोल दिया तो बोल दिया! किसी ने कोई आपत्ति नहीं ली। आप भी मत लें, चलने दें! तवाबाज़ सुनने में अच्छा भी लगता है! Discophile शब्द बहुत अच्छा है पर इसमें रोजमर्रा के वाचन का वो वजन, वोल्टेज, वाग्मिता या वाकफियत नहीं है!
सब समझाने के बाद भी कोई भी हमारे साथ कबाड़ीबाजार चलने को तैयार नहीं हुआ! बस सब यही कहते थे: खुद ही कर लो Disco, कबाड़ी बाजार में! साथ भी नहीं आए और डरा अलग दिया। एक डेढ़ साल ऐसे ही गुज़र गया।
बेगुमपुल के पास स्थित HPCL के पेट्रोल पंप के मालिक कैप्टन श्री सुभाष अग्रवाल जी से अच्छी दोस्ती हो गई थी।एक दिन उनको भी अपनी राम-कथा सुनाई। उन्होंने तुरंत अपने किसी कर्मचारी को उसी की बाइक पे बैठा के रवानगी डलवा दी। पहुंच गए कबाड़ी बाजार। उसको पहले ही समझा दिया गया था, सिर्फ डिस्को करना है!
पता नहीं कौन कौन सी पतली गलियों से निकल कर कबाड़ी बाजार पहुंच ही गए। नीचे अन्य दुकानों के साथ कुछ कबाड़ियों की दुकानें और ऊपर बहुत पुराने अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे मर्दों द्वारा औरतों को भेंट किए गए मलिन कोठों के पिंजरेनुमा छज्जों, खिड़कियों, दरवाजों, गलियारों से झांकती, इशारे करती, आवाज देती लिपि-पुती मजबूर लड़कियां। ऐसा लगा कि नर्क अगर कहीं है तो वो यहीं है।
ये मेरठ का वो अंदर वाला क्षेत्र है जहां दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चुराई गई कारें मिनटों में 'काटी' जाती थीं। नीचे चुराई गई कारें काटी जाती थीं और ऊपर चुराई गई लड़कियां।
इन दुकानों में भी एक प्रकार की विशेषज्ञता थी। किसी दुकान में सिर्फ दरवाजे, किसी में इंजन, किसी में सीट्स, किसी में कार के कैसेट प्लेयर्स, किसी में सिर्फ टायर्स बिकते थे। कुछ ग्राहक सब कुछ नया नया चाहते हैं काम दामों पर, भले ही वो चोरी का हो। ऊपर कोठे के ग्राहकों की मानसिकता भी शायद भिन्न नहीं होती होगी।
इन्हीं दुकानों में कुछ कबाड़ीवाले पुरानी चीज़ें जैसे कैमरे, घड़ियां और तवे भी रखते थे। हमारा बाइक-सारथी हैरान परेशान हो रहा था पर साब के परिचित से पंगा कौन ले!? बेचारा चलते रहा हमारे साथ! आंखें नीचे गड़ाए और आवाजों को अनसुना करते हुए एक दुकान से दूसरी दुकान तक तहकीकात करते रहे। पूछ-पूछ कर आखिर में सही दुकान पर पहुंच ही गए। वहां सिर्फ कार्बोरेटर ही कार्बोरेटर बिखरे पड़े थे। ऐसे ही किसी कार्बोरेटर के ढेर के नीचे 25-30 श्याम सुंदरियां ( ग्रामोफोन के रिकॉर्ड्स) धूल और ऑइल के हेवी मेक अप में पड़ी हुई थीं।
जल्दी जल्दी सभी रिकॉर्ड बगैर मोलभाव के और बगैर देखे खरीद डाले। दुकानदार ने शुक्रिया अदा किया और कहा कि अगले हफ्ते नया लॉट आने वाला है, जरूर देख जाना। हमने भी हां में हां मिलाई और फौरन रुखसती ले ली। पर फिर उसके बाद कभी वहां लौटने की ना हिम्मत हुई ना इच्छा, जबकि वो कबाड़ीवाला काफी मित्रवत स्वभाव और तहज़ीब वाला था!
बाइक पर लौटते हुए हाथों में रिकॉर्ड्स लिए ऐसा लग रहा था जैसे हम बहुत बड़े हीरो हैं और बहुत सारी श्याम सुंदरियों को एक बचाव अभियान के तहत बचा ले आए हैं!
रिकॉर्ड लिए पेट्रोल पंप पर पहुंचे। सुभाष जी ने एक तश्तरी में चाय और एक तश्तरी में थोड़ा सा पेट्रोल मंगवाया। सारे रिकॉर्ड पेट्रोल और पेट्रोल पंप पर बिकने वाले पीले कपड़े से साफ करवाए गए। अब कुछ रिकॉर्ड्स पर नाम पड़े जा सकते थे। इनको पेपर में पैक करके कार की पिछली सीट पर रखवा दिया गया। उनका बहुत स्नेह था हम पर। दुख इस बात का है की इस किस्से को उनके जाने के 14 साल बाद लिखा जा रहा है।🙏
घर आकर रिकॉर्ड्स देखे तो बांछे खिल गईं। इसमें कुछ 30-40 के दशक के फिल्मी गानों के अलावा कुछ बहुत पुराने तवे भी थे, जैसे: जानकी बाई इलाहाबाद वाली, कालीजान दिल्ली वाली, बन्नी जान मेरठ वाली, पिआरा साहब, जोहरा जान और मलका जान के तवे।
गुजरे जमाने के तवे देखें तो उनमें कई प्रकार के 'जोहरा' नाम आते हैं। जैसे जोहरा बाई अंबाला वाली, जोहराबाई आगरावाली, मिस जोहरा, और जोहरा जान। आज सिर्फ जोहरा नाम वाली गायिकाओं के बारे में ही बात कर लेते हैं।
(1) सबसे सीनियर जोहरा थीं, जोहराबाई आगरावाली (1868-1913) जिन्हें अब कम ही लोग पहचानते हैं। ये गौहर जान की समकालीन थीं और उन्ही के समान ग्रामोफोन के जमाने की सुपर स्टार थीं। इनके गाए कुछ गाने आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।
इन्होंने सन 1910 के आसपास , 110 साल पहले, एक गाना ये गाया है: पीके हम तुम जो चले झूम के मैखाने में... ! आप समझ रहे हैं ना, पीने पिलाने की बात की जा रही है; रागों की बंदिश में और वो भी 110 साल पहले एक महिला गायिका द्वारा!
इस गाने के बोल ये हैं: अल्लाह जाने रे, जवानी क्यों नहीं बस में! इस गीत की धुन मिस दुलारी के गाए ओरिजिनल गीत झुमका गिरा रे से चुराई गई है। मजे की बात ये है कि असली संगीतकार और धुन चोरी करने वाले संगीतकार, दोनों का ही नाम अज्ञात है!
ये एक सत्य है कि बड़े-बड़े फिल्मी गीतकारों और संगीतकारों ने बेरोकटोक, बेखौफ ग्रामोफोन के संगीत काल (1902-1932) से गाने और धुनें चुराई हैं। कई गीत तो पूरे-पूरे चुरा लिए गए।और हमारे गुणी पूर्वज उनके गीत संगीत की रचना का श्रेय परलोकवासी होने के बाद भी प्राप्त नहीं कर सके।
(3) जोहरा बाई अंबालावाली ( 1918-1990) बहुत प्रसिद्ध हुईं। ये भारत के फिल्मी संगीत की पहली पीढ़ी की सफल गायिका थीं। इन्होंने चालीस के दशक में कई बेहतरीन हिट गाने दिए जैसे: अंखियां मिलाके जिया भरमाके (रतन 1944), आई दिवाली आई दिवाली (रतन 1944), उड़ान खटोले पे उड़ जाऊं ( अनमोल घड़ी 1946,शमशाद बेगम के साथ)।
इन्होंने एक विवादास्पद गीत भी गाया है जिसे लिखा है जोश मलीहाबादी ने , संगीतबद्ध किया है एस के पाल ने और फिल्म का नाम है: मन की जीत (1944)। ये गीत किसी भी काल में अश्लील ही कहा जाएगा। इसके बोल ऐसे हैं: मोरे जुबना का देखो उभार पापी , जुबना का देखो उभार। इस गाने के बोल नीचे फुटनोट में दिए हैं। जहां तक गायकी का सवाल है, जोहरा बाई अंबालावाली ने गाना बहुत अच्छा गाया है।
चालीस के दशक में कुछ ऐसे ही गीतों के बनने के बाद सेंसर बोर्ड को बनाने की आवश्यकता हुई थी।और सेंसर बोर्ड बन भी गया 15 जनवरी 1951 को। उनकी केंचिया भी खूब चलीं, गलत गानों और फिल्मों पर अंकुश भी लगे पर कोठे चलाने वालों पर कैंची नहीं चलती है, वो निरंकुश चलते रहते हैं, ये भी एक कटु सत्य है।
सरकारें, समाज और लोग औरत को फकत जिस्म समझ लेते हैंं। सरकारें आती रहती हैं, सरकारें जाती रहती हैं। कोठे सजते रहते हैं। दुनिया चलती रहती है। अपन भी चलते हैं अभी के लिए। फिर मिलते हैं अगले शनिवार को।🙏🙏🙏
पंकज खन्ना, इंदौर
9424810575
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गायिका: जोहरा बाई अंबालावाली
संगीतकार: एस के पाल
गीतकार: जोश मलीहाबादी
फिल्म: मन की जीत (1944)
मोरे जुबना का देखो उभार पापी जुबना का देखो उभार मोरे जुबना का ओ मोरे ओ मोरे जुबना का देखो उभार पापी जुबना का देखो उभार जैसे नदी की मौज जैसे तुर्को की फौज जैसे नदी की मौज जैसे तुर्को की फौज जैसे सुलगे से बॉम्ब, जैसे बालक उधम जैसे कोयल पुकार, जैसे कोयल पुकार देखो-देखो उभार, हो पापी हो पापी हो पापी जुबना का देखो उभार हो पापी मोरे जुबना का हो मोरे मोरे राजा जुबना का देखो उभार पापी जुबना का देखो उभार जैसे धन्नी उड़े जैसे तूफान मे जैसे भवरो की झूम, जैसे सावन की धूम जैसे गाती फुहार, जैसे गाती फुहार देखो-देखो उभार, हो पापी हो पापी हो पापी जुबना का देखो उभार हो पापी मोरे जुबना का हो मोरे हो मोरे जुबना का देखो उभार पापी जुबना का देखो उभार जैसे सागर पे भोर, जैसे उड़ता चकोर जैसे गेंदवा खिले, जैसे लट्टू हीले जैसे गद्दर अनार, जैसे गद्दर अनार देखो-देखो उभार, हो पापी हो पापी हो पापी जुबना का देखो उभार मोरे जुबना का हो मोरे मोरे राजा जुबना का देखो उभार पापी हो पापी हो पापी हो पापी जुबना का देखो उभार