(18) संगीत के रसिया, सुमन चौरसिया!🎵🎶

तवा संगीत: (18) संगीत के रसिया, सुमन चौरसिया!

 पंकज खन्ना, इंदौर।

9424810575


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इंदौर के सराफे में तवे पर बने  नाना प्रकार के व्यंजन जैसे टिकिया छोले, भुट्टे का किस, पावभाजी, डोसे, आदि सालों से ना सिर्फ इंदौर बल्कि पूरे देश के  खाऊ लोगों को लुभाते रहे हैं। सालों से सराफे की इस विशेषता को देश भर की पत्र पत्रिकाओं में भी प्रमुखता से छापा गया है। 

पर इस सराफे का एक बहुत पुराना  संबंध संगीत के तवों ( रिकॉर्ड्स) से भी रहा है। लेकिन ये बात कभी भी नई पीढ़ी को बताई ही नहीं गई। आज की फेसबुक ,व्हाट्सएप, और यू ट्यूब की पीढ़ी के  लोग इस तथ्य को नहीं जानते हैं। ये दुखद है कि पुरानी पीढ़ी के लोग  भी इस तथ्य को सालों से भुला बैठे हैं।

सड़क पर  तवे से उतरा खाना या सड़क पर तवे से उतरा गाना!? लुत्फ दोनों में है। क्या पसंद करेंगे आप!?

🎶🎼🎵!!! तो आज तवे की पाव भाजी और अन्य व्यंजन भूलकर, याद करते हैं इंदौर के सराफा से विलुप्त लेकिन कुछ दिलों में आज भी जिंदा, नायाब आइटम - तवे से उतरा बेहतरीन संगीत !

सराफे में अस्सी और नब्बे के दशक में इन खाने पीने के ठिकानों के पास ही एक  शांत कुर्ता-पजामाधारी व्यक्ति कुछ अलग ही तवों की कई थप्पियां ,  एक Garrard 301 टाईप का रिकॉर्ड प्लेयर और कुछ खाली कैसेट्स लेकर एक डायरी की दुकान के ओटले पर  शाम के समय बैठा करते थे। ये सराफे में आए पेट पूजा करने वाले लोगों की नजरों के रडार में बिल्कुल नहीं आते थे।  बस संगीत के कुछ भूखे-प्यासे लोग सराफे के सारे व्यंजनों  को छोड़कर इनके पास पधारा करते थे। 

ये व्यक्ति हैं इंदौर के संगीत प्रेमियों के चहेते और संगीत के रसिया, श्री सुमन चौरसिया जिन्होंने सालों साल गरीब और मध्यमवर्गीय संगीतप्रेमियों को लगभग निस्वार्थ भाव से तवे से संगीत परोसकर   संगीत का अनुपम तोहफा दिया है। इनकी  तवाबाजी तो आज भी जोर-शोर से जारी है पर अब  संगीत में कैसेट संग्रह करने वाली  या कैसेट में गाने भरने वाली तो कुछ बात  ही नही बची है। जो भी प्रसिद्ध  गाने हैं वो सभी आसानी से नेट पर मुफ्त में उपलब्ध हैं। आप कितना भी संग्रह कर सकते हैं कंप्यूटर या मोबाइल पर। 



इस हर क्षण बदलती दुनिया में ये 'डबिंग' का काम धीरे धीरे कम होता गया , बहुत कम होता गया और सदी के बदलने के साथ कमोबेश बंद ही हो गया। सुमन जी भी  इंदौर के सराफे से इंदौर के ही ग्राम पिगडंबर में रहने चले गए।

कंप्यूटर, इंटरनेट और यू ट्यूब आने के पहले मन पसंद  गीतों का संग्रह करना बड़ा मुश्किल काम होता था। रेडियो से गाने सुनो और कोई गाना अच्छा लगे तो फिर मार्केट में कैसेट्स में उस गाने को ढूंढो। मिल भी जाए तो एक गाने के लिए पूरा कैसेट खरीदो और फिर फॉरवर्ड/बैकवर्ड करके  सुनो। बहुत कठिन समय था हुजूर! पर आनंद बहुत आता था! वो एक गाना सुनने पर जो खुशी मिलती थी अब फ्री में सुबह सुबह प्राप्त हुए  हजारों गानों में भी नहीं मिलती। अब तो ये खेल हो गया है, व्हाट्सएप पर संगीत के गोले दागने का।

कैसेट वाले दिनों में, लोग कागज़ पर अपने पसंद की लिस्ट बनाकर सराफे में उनके पास आया करते थे। सुमन दादा अगले दिन कैसेट बनाकर दे दिया करते थे। सिर्फ 10-20 रुपयों में अपनी पसंद के गानों के कैसेट्स मिल जाया करते थे जबकि बड़ी कंपनियों के  बने बनाए कैसेट 40-50 रुपयों में मिलते थे जिनके कुछ ही गाने हिट या पसंद के होते थे।

हम भी इंदौर में जब छुट्टी लेकर आते थे तो एक लिस्ट लेकर इनके पास जाया करते थे और हर बार एक दो कैसेट बनवा लिया करते थे। उस लिस्ट को बनाने में ही कई महीने लग जाते थे। हमारे समान एक साधारण संगीत प्रेमी की सारी जरूरत यहां  आसानी से पूरी हो जाती थीं। तब भी ये ज्यादा बात नहीं करते थे। कम से कम बातें और ज्यादा से ज्यादा काम। आज भी ये ही सिद्धांत है इनका।

संगीत के ढेर सारे तवों के चक्कर में न पड़कर यदि इन्होंने इतने साल सिर्फ  एक बड़े तवे पर पर तेल डालकर , तड़का लगाकर इंदौर की खाने-पीने की प्रेमी जनता को कुछ भी बेचा होता तो आज लोग इनकी दुकान पर लाइन लगाकर  पैसे देने की होड़ में लगे होते। और ये तवे की नही, बल्कि नोटों की थप्पियाँ सजा रहे होते। अगर इन्होंने अपना पुश्तैनी धंधा भी रेलवे स्टेशन के पास  जारी रखा होता तो भी इनके पास कुछ ज्यादा ही पैसे बरस रहे होते। 

लेकिन ऐसा हुआ नहीं। लोग सराफे में 'तवे' से रुपए निकलते रहे और ये अद्भुत मनुष्य 'तवे' में रुपए डालते रहे!  अगर  इन्होंने भी अन्य दुकानदारों के समान सामान्य धंधा भी किया होता तो इनकी गिनती भी शहर के रईसों में होती। पर इंदौर शहर, प्रदेश और देश का बहुत नुकसान हुआ होता और हम सब  सुमन दादा द्वारा स्थापित इंदौर के गौरव लता दीनानाथ मंगेशकर संग्रहालय से वंचित रह जाते।🙏
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इनका जुनून तो कुछ और ही स्तर का था और आज भी है। फक्कड़ स्वभाव के और मिट्टी से जुड़े  सुमन दादा ने सिर्फ इन 'मिट्टी/पत्थर' के तवों के संग्रह पर अपनी जिंदगी लगा दी है। आज इनके संग्रह में कुल 46000 से अधिक तवे हैं। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वो तवाबाजी के क्षेत्र के दशरथ मांझी हैं। ये देश के नहीं तो कम से कम मध्य और उत्तर भारत के तवाबाज़ नंबर 1 अवश्य ही हैं।


इनका जन्म 26 फरवरी 1951 में हुआ और  साठ के दशक के मध्य से ही रिकॉर्डों का संग्रह शुरू कर दिया था।  जैसे ही इन्हें मालूम पड़ता कि कहीं पर तवे बिकने वाले हैं तो वहां सही समय पर पहुंच जाते और सारे तवे खरीद लेते। आज भी यही हाल है। करोना काल में जब हम लोग घरों में दुबके पड़े थे; ये घर पर नहीं टिक पाए और मुंबई तथा अन्य स्थानों से कई-कई बार रिकॉर्ड खरीद लाए! इस देश के करीब 1000 लोगों को ये तवा संग्रह की ' बीमारी' या 'लत' है। क्या कहें इस 'लत' को!? तवासीर!!??  'तवासीर' के कीड़े ने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा सुमन दादा को ही काटा है! इसके काटे का कोई इलाज नहीं! किसी भी संग्रहकर्ता से पूछ लो!

इनके जीवन में ऐसा भी वक्त आया कि जब पैसे नहीं थे तो स्वयं की  ढाई एकड़  जमीन को बेचकर रिकॉर्ड संग्रह के शौक को पूरा किया।

इनका संग्रह दिनों-दिन बड़ता चला गया और इस संग्रह ने सन 2008 में एक संग्रहालय की शकल ले ली। घर को ही संग्रहालय बना दिया और  नाम दिया लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स संग्रहालय। संग्रहालय क्या है, मंदिर कहिए इसे तो। और खुद ये पुजारी हैं, तपस्वी हैं, 'तवस्वी' हैं संगीत के।  

पूरे देश में लता मंगेशकर का इनसे बड़ा फैन कोई नहीं है। इनके पास  लता मंगेशकर के गाए लगभग सभी 7600 तवे हैं। और जो  40-50 तवे नहीं भी हैं , उनके गाने कैसेट में जरूर हैं इनके पास।

कभी इनको संग्रहालय में तवों को नजाकत से शेल्फ से उतारकर धीरे से रिकॉर्ड प्लेयर पर रखते हुए देखिए या इनको कहीं पीछे अलमारी से तवों की गठरी को लाते देखिए। गठरी ना हो गई, जैसे किसी गोपी की गगरी हो। छलक ना जाए!

आपको लताजी का रोशनजी के संगीत में फिल्म 'जिंदगी और हम' (1962) का ये गीत याद दिला देते हैं, जिसे लिखा है पंडित शिवकुमार सरोज ने:


ये तवे ही इनका सिंगार हैं। बहुत ख्याल रखते हैं अपने सिंगार का। इनके हाथों में रिकॉर्ड ना हो तो ये बड़े अकेले से दिखते हैं! ये गाना सुमन जी को बहुत अधिक प्रिय है। ऊपर के लिंक को क्लिक करके जरूर सुनें। लताजी और रोशन जी को तो आप पसंद करेंगे ही, सुमन जी की पसंद को भी दाद दिए बिना नहीं रह पाएंगे!

अजातशत्रु द्वारा लिखित और लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स संग्रहालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'अनजाने गायक, अनसुने गीत' में इस गीत का बहुत सुंदर वर्णन है।

जैसे ही सुमन जी का नाम आता है तो लताजी का नाम अपने आप आ जाता है। लोगों के मन में ये भ्रांति है कि सुमन जी सिर्फ लता मंगेशकर के रिकॉर्ड्स ही संग्रह करते हैं। वास्तव में, उनके पास जितने लताजी के रिकॉर्ड्स हैं उससे कई गुना अधिक अन्य रिकॉर्ड्स भी हैं जो बहुत दुर्लभ भी हैं और देश की धरोहर भी हैं।

आज के जमाने में बहुत से कॉलेज 'ड्रॉप आऊट' अच्छे बड़े 'स्टार्ट अप' चालू करके बहुत नाम  कमा रहे हैं। सुमन दादा भी पुराने जमाने के कॉलेज 'ड्रॉप आउट' हैं और इनके शुरू किए गए 'सेट अप' का कोई तोड़ नहीं है। इन्होंने दूरदृष्टि, लगन, मेहनत और जुनून का वो बेहतरीन उदाहरण पेश किया है जो सभी पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है। 

आज से आठ साल पहले सुमन चौरसिया जी पर एक लघु फिल्म 'सुरीले सुमन का  सुहाना  सपना' नाम से बनाई गई जिसके दो भाग यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं।  इन दोनों भागों को देखने के लिए नीचे दिए लिंक्स को क्लिक करें:


इस आलेख के लिखे जाने के ठीक पहले तक इन दोनों भागों को 100 बार भी नहीं देखा गया है। लेकिन आप जरूर देखें। इनमें आपको मुबारक बेगम, श्यामा, योगेश, स्वर्गीय राजकुमार केसवानी, पंकज राग, अजातशत्रु और अन्य कई हस्तियों के उद्गार, बहुत सारे गाने और सटीक जानकारियां भी प्राप्त होंगी। 
इन वीडियो को देखने का बाद आपको भी हमारे समान आश्चर्य होने लगेगा कि ये वीडियो संगीत प्रेमियों के बीच में वायरल क्यों नहीं है!?

अभी लगभग डेढ़ वर्ष पहले दूरदर्शन इंदौर ने एक छोटी फिल्म लता दीनानाथ मंगेशकर संग्रहालय पर बनाई है जिस देखने के लिए यहां क्लिक करें। इसके अलावा भी इन्होंने एक प्राइवेट चैनल को इंटरव्यू में कई बहुत अच्छी बातें बताई हैं। इस इंटरव्यू को देखने के लिए यहां क्लिक करें। किसी और दूसरी चैनल को दिए गए इंटरव्यू के लिए यहां क्लिक करें!

सुमन जी के संग्रहालय द्वारा प्रकाशित कुछ पुस्तकें इस प्रकार हैं:

(1) सदियों में एक आशा: लेखक अजातशत्रु
(2) लता और सफर के साथी: लेखक अजातशत्रु
(3) हिंदी चित्रपट गीत संगीत कोश 1981-1990: जगदीश पुरोहित और गुलाम कुरेशी
(4) वो जब याद आए,  बहुत याद आए (रफी):अजातशत्रु 
(5) एक मशाल आजादी के तरानों की: अजातशत्रु 
(6) लता समग्र: सुमन जी, गुलाम कुरेशी और संजय मंडलोई 
(7) बाबा तेरी सोनचिरैय्या: अजातशत्रु
(8) अनजाने गायक, अनसुने गीत: अजातशत्रु 

सुमन जी पर बहुत सारी पत्र पत्रिकाओं में  में बहुत सारे लेख लिखे जा चुके हैं। उनमें से कुछ चुनिंदा लेखों को पढ़ने के लिए नीच दिए लिंक्स पर क्लिक करें:



लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स संग्रहालय के यू ट्यूब चैनल को देखने के लिए यहां क्लिक करें।

आज तो बात हुई सिर्फ सुमन दादा के बारे में। इनके संग्रह के बारे में तो बात शुरू ही नही हो पाई। ऐसा लगता है कि इनके संग्रह को समझने और समझाने लायक योग्यता भी नहीं है हममें। फिर भी एक बार कोशिश तो जरूर की जाएगी, आगामी कुछ महीनों में। 

संक्षेप में इतना तो बता ही सकते हैं कि इनके पास 32 भाषाओं में रिकॉर्ड किए गए 46000 से ज्यादा रिकॉर्ड्स हैं। सभी साइज के रिकॉर्ड्स चार इंच से लेकर 24 इंच तक- संग्रहालय में उपलब्ध हैं। स्पीड के बात करें तो 16.66 RPM से लेकर 78 rpm तक की स्पीड वाले तवे संग्रहालय में शोभायमान हैं। बहुत पतले प्लास्टिक की शीट, कार्डबोर्ड, धातु, लाख ( Shellac) और वाइनल (Vinyl)  पर बने रिकॉर्ड बहुत अच्छी अवस्था में विराजमान हैं इस संगीत के मंदिर में।

यहां विभिन्न भाषाओं के दुनिया भर के लाल, पीले, नीले, हरे, काले तवे देखे और सुने जा सकते हैं। बच्चों के गीत, सभी धर्मों के संगीतमय उपदेश, लता मंगेशकर के लगभग सारे गाने, ग्रामोफोन काल (1902 से लगभग 1931 तक) के सभी प्रमुख गायक और गायिकाओं के तवे, नेत्रहीनों के लिए बने तवे, नेताओं की आवाज के तवे, आजादी के लिए प्रेरित करने वाले गीतों के तवे, और पता नहीं क्या क्या भरा रखा है इस 1600 स्क्वायर फीट के मौसिकी के अजायबघर में। कई टाइप के ग्रामोफोन , टेप रिकॉर्डर और स्पूल वाले रिकॉर्डर भी यहां देखे जा सकते हैं।

संगीत के दशरथ माझी ने तो पहाड़ काट कर सबको रास्ता दिखा दिया है। इस रास्ते को बनाए रखना और सजाना अब हम सभी का कर्तव्य है। सुमन दादा की देखरेख में , इस संग्रहालय की हर वस्तु और हर तवे का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करना, दस्तावेजीकरण करना, कैटलॉग बनाना और संगीत का डिजिटाइजेशन करना अत्यंत जरूरी है। इस विषय पर चर्चा होना और फिर सुमन दादा को सहयोग देना जरूरी है।🙏

सुमन जी और उनके एकाकी प्रयत्नों से बने संग्रहालय पर आपके जो भी विचार हैं; इसी ब्लॉग के नीचे कमेंट्स सेक्शन में हिंदी या इंग्लिश में लिख दें। इसके अलावा आपकी  जो भी यादें सुमनजी या संग्रहालय से जुड़ी हैं, उन्हें भी नीचे लिपिबद्ध कर सकते हैं ताकि सनद रहे। धन्यवाद! 🙏🙏🙏



 पंकज खन्ना, इंदौर।

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