(7) गर्भस्थ शिशु का संगीत
तवा संगीत (7): गर्भस्थ शिशु का संगीत।
पंकज खन्ना
9424810575
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पिछले (छठे) ब्लॉग में 'आया आया अटरिया पे कोई चोर' गाने का जिक्र हुआ था। हमारे एक दोस्त को ये गाना ब्लॉग में डालना पसंद नहीं आया। दोस्त ने आगे ये भी कहा कि इतना हलका गाना ब्लॉग में कैसे डाला जा सकता है? इस बात का जवाब देने के पहले संगीत के बारे में हमारी समझ या सोच क्या है, ये बता देते हैं।
गर्भ में बच्चे 18 हफ्ते की उम्र होने तक सुनने की शक्ति ग्रहण कर लेते हैं ऐसी वैज्ञानिक मान्यता है।ये गर्भस्थ बच्चे मां के दिल की धड़कन और पेट की 'गुडूम-गुडुम' की ध्वनि सुनने लगते हैं। गर्भस्थ बच्चे के अंधेरे लेकिन सुरक्षित संसार में मां के हृदय की धड़कन ही सुमधुर संगीत होती है और 'गुडूम-गुडुम' सिर्फ एक ध्वनि (Sound)।
प्राचीन भारत के लीलाधर मनीषियों ने सृष्टि की उत्पत्ति की परिकल्पना नाद ( शब्द, ध्वनि, आवाज) से की है। माना जाता है कि ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण जड़-चेतन में नाद व्याप्त है इसी कारण इसे "नादब्रह्म” भी कहते हैं। गर्भस्थ शिशु के लिए तो गर्भ ही नादब्रह्म है।
गर्भ की 'गुडूम-गुडुम' सुनकर संभवतः शिशु मुस्कराते होंगे, क्योंकि इसमें संगीत का अभाव होता है, सिर्फ अनियमित (Irregular) और यादृच्छिक ध्वनि (Random Sound) होती है । संगीत से परे ,ये अनियमित ध्वनि गर्भस्थ शिशु के लिए हास्य का कारण बन जाती है। क्योंकि उन्हें भी अच्छे मधुर संगीत का अहसास तो मां के हृदय से पहले ही हो चुका होता है। वो गर्भ के बच्चे भी संगीत और ध्वनि के बीच का अंतर बगैर भाषा का ज्ञान रखते हुए समझते हैं।
पिछले लगभग 100 सालों के फिल्मी या गैर फिल्मी गानों के इतिहास से कोई भी फनी या हास्यजनक गाना सुन लें; इसमें संगीत के साथ थोड़ा 'गुडूम-गुडुम' या Random Sound तो होगा ही जो शब्दों के साथ मिलकर हास्य उत्पन्न करेगा।
गर्भावस्था से ही बच्चों को यही धीमी ताल (Slow Beat) वाले सुमधुर संगीत या कंपन की आदत लग जाती है। गर्भ से बाहर आने के बाद भी उसे मां के हृदय की भाषा (धड़कन) को पहचानने की समझ होती है। मां के हृदय से चिपककर ही उसे चिरपरिचित संगीत सुनाई देता है और सुकून मिलता है। तेज और धीमे की पहचान करने वाला गणित भी शिशु में पहले से विद्यमान होता है, अर्थात Preloaded होता है।
संगीत के पिच, फ्रीक्वेंसी, ऑक्टेव की बात करें या दिल की धड़कन की गति की जो सामान्यतः एक मिनट में 70 से 80 धड़कन होती है; आप पाएंगे कि गणित और संगीत में बहुत अधिक समरसता,सामंजस्य और सद्भाव है। संगीत हो या गणित दोनों ही भगवान की भाषाएं हैं।*
यही गणित पालने(Cradle) को हिलाने पर भी लागू होता है। अगर बच्चे के पालने को बहुत धीरे से हिलाया जाए तो बच्चे को चैन नहीं मिलता है। और अगर बहुत तेज हिलाया जाए तो वो घबरा जाता है, रोने लगता है। लेकिन अगर पालने को मां के दिल की धड़कन के समान अगर 70-80 धड़कन प्रति मिनट के अनुसार चलाया जाए तो बच्चा शांति से सो जाता है; गर्भ काल के सुकून भरे दिनों को याद करके। गर्भकाल शुरू होने से लेकर लगभग 2-4 साल की उम्र तक शिशु यही संगीत और ताल पसंद करता है। यही प्रकृति का नियम है।
और शायद यही कारण है कि 78 rpm के रिकॉर्ड्स को घूमते देखना बाकी 45 या 33.33 स्पीड के रिकॉर्ड्स को घुमते देखने से ज्यादा सुखद लगता है।
ज्यादातर संगीत प्रेमियों को बड़े होने के बाद भी धीमी ताल वाले गाने ज्यादा पसंद आते हैं जो हृदय की धड़कन की गति के आस पास हों। तेज गति के संगीत को सुनने के लिए रुचि विकसित (Taste Develop) करनी पड़ती है जो सभी के लिए संभव या/और आवश्यक नहीं है।
आपको संगीत मधुर लगता है या कर्कश ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप संगीत क्यों सुनते हैं। अगर आप संगीत मन की शांति, आत्मिक शांति या आध्यात्मिक प्रगति के लिए सुन रहे हैं तो आप धीमा संगीत ही सुनना पसंद करेंगे जो मां के हृदय की धड़कन की गति के आसपास हो। इस प्रकार के लोगों को तेज संगीत कर्कश लग सकता है।
लेकिन अगर आप नई पीढ़ी के समान एक्साइटमेंट ,जोश या उत्तेजना के लिए संगीत सुनते हैं तो आप तेज गति का संगीत ही पसंद करेंगे और आपको धीमा संगीत बहुत बोरिंग लगेगा।
इसलिए किसी भी प्रकार के संगीत को बुरा बोलने से परहेज करना चाहिए। संगीत तो संगीत है, नादब्रह्म है, ईश्वर की भाषा है। बस पसंद अलग अलग होती हैं। और लोग अलग अलग कारणों से संगीत सुना करते हैं, अलग अलग मंजिलों के लिए।
हमने उक्त गाने के संगीत की तारीफ नहीं की है इसका मतलब ये नही है कि ये संगीत बुरा है। सिर्फ गाने के नृत्य और बोलों के फूहड़पन को जरूर रेखांकित किया है। हमारी व्यक्तिगत राय है कि वो गाना जिसे जाग्रत और सुप्तावस्था में समान रूप से सुनकर आत्मिक आनंद प्राप्त कर सकें, वही श्रेष्ठ गीत-संगीत है।
सच है कि ऊपर लिखा गाना हम कभी भी सोते समय सुनना नहीं चाहेंगे। लेकिन दिन में ऐसे हल्के फुल्के गाने भीं चलेंगे, इनमें भी अच्छा खासा संगीत है, थोड़ी फूहड़ता होने के बाद भी। भले ही ये श्रेष्ठ न हों लेकिन फिर भी मनोरंजन के लिए सुने जाने लायक तो होते ही हैं।
ये ही क्यों, सभी पाश्चात्य सभ्यता के गाने भी दिन में सुने जा सकते हैं जिनमें खूब तेज ध्वनि होने के बाद भी संगीत तो होता ही है। कोई गाना सिर्फ इसलिए चवन्नी छाप नहीं मान लिया जाना चाहिए क्योंकि उस पे चवन्नियां लुटाई गई थीं।
जैसे हर धर्म के लोगों में दूसरे धर्मों के लिए सहनशीलता में कमी आई है, उसी प्रकार से संगीत की पसंद में भी खाई बढ़ती जा रही है। संसार के सारे संगीत को समग्र स्वरूप में सहनशीलता, सत्यनिष्ठा और सकारात्मकता से स्वीकार करना ही संवेदनशीलता है, समझदारी है।
सभी ध्वनियां कर्कश नहीं होती हैं। ध्वनि से ही संगीत बनता है। नैसर्गिक संगीत के कई प्रकार होते हैं जो कई ध्वनियों से उत्पन्न होते हैं,जैसे: हवा का बहना, पानी का बहना या गिरना, पेड़ों का झूमना, चिड़ियों का चहकना, कीट पतंगों का गाना, मेंडकों का टर्राना, मुर्गे का बांग देना, गाय का रंभाना, जंगल में सभी जंगली जानवरों की आवाजें, दूर पहाड़ से एकांत में रात के अंधेरे में कुत्ते का भौंकना, छोटी कक्षाओं में बच्चों का चिल्लाकर गुड मॉर्निंग टीचर कहना आदि आदि।
पहले बता रहा हूं, रात के सन्नाटे को चीरती हुई सनसनी की ध्वनि संगीत की परिधि में नहीं आयेगी!
ध्वनि की ज्यादा बातें करेंगे तो स्कूल की फिजिक्स, ध्वनि का अध्याय और डॉपलर का प्रभाव (Doppler's Effect) सब याद आ जायेगा। हमारी उम्र के दोस्त खौफ खा जायेंगे, खफा हो जायेंगे! दो-चार पाठक हैं, वो भी रवानगी डाल गए तो ब्लॉग बैठ जायेगा!
हमारी बेफिजूल में इतनी गंभीर बातें करने की आदत तो है नहीं इसलिए अब आपको बेहतरीन जानवरों की आवाजों पर एक रिकॉर्ड सुना देते हैं, बात भी चिड़िया और जानवरों की चल रही थी। इस को रिकॉर्ड किया गया था 1905 के आसपास, लगभग 116 साल पहले। इसे प्रस्तुत किया है उस जमाने के किसी शेख अब्दुल रहमान ने।
रिकॉर्ड का नाम है: Imitation of Animals by Shaikh Abdul Rathman**. इसकी रिकॉर्डिंग Archives of Indian Music पर उपलब्ध है। सुझाव है इसे पूरा सुनें, नीले वाक्य पर क्लिक करके। अंत में अंग्रेज या हिंदुस्तानी जो कुछ भी बोलता है , उसकी अंग्रेजी भी सुनें।
Abdul Rahman Shaikh से याद आया एक और Mister Sheikh थे जिन्होंने 1956 में एक हास्यजनक हल्का फुल्का गाना गाया था औरत बने हीरो के लिए फिल्म हातिमताई में। (संगीत: एसएन त्रिपाठी, गीतकार: राजा मेंहदी अली खान)।पुरानी टाइप की कॉमेडी है। आदमी लोग औरत बनकर नाच गा रहे हैं। वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें।
ये तो हो गए दो पुराने वाले शेख जिनके बारे में net पर ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस गाने का सच में मज़ा लेना है तो इसके बोल पढ़ते जाएं और एक आज के जमाने के तीसरे शेख की आवाज़ में इस गाने को सुनिए। ये तीसरे शेख हैं , 'दुबई के शेख' श्री संजीव फड़के उर्फ़ पायलट उर्फ़ बबलू भिया। ये हमारे एसजीएसआईटीएस इंदौर की 1983 की बैच के बैचमेट हैं। इनसे रिक्वेस्ट की तो इन्होंने सिर्फ 48 घंटो में इस गाने को तैयार किया है और बगैर किसी संगीत के इसे गाया है और बहुत बढ़िया गाया है, सभी 43 साल पुराने 1978-83 की बैच के दोस्तों के लिए। 🙏🙏🙏🙏
कई बार सीधे गले से उतरा गाना तवे से उतरे गाने से ज्यादा अच्छा लगता है।बहुत धन्यवाद बबलू भिया! तो तीसरे शेख उर्फ बबलू भिया की आवाज़ में गाने को सुनने के लिए यहां क्लिक करें और नीचे लिखे गाने को पढ़ते जाएं साथ साथ में।थोड़ा मस्ती मजाक हो जाए जाते जाते:
नखरे करती डरती डरती
गई थी मैं बाजार।
मुझे अकेली देख के
जम गए लोग हजार।
तो आ गया मुझे बुखार।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी!
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी!
बाज़ार गई थी, मैं बाजार गई थी
बाजार गई थी, में बाज़ार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
बलखाती गाती इठलाती
लाने गई खजूरे।
बलखाती गाती इठलाती
लाने गई खजूरे।
शरम के मारे मर गई
मुझको दुनिया वाले घूरे।
शरम के मारे मर गई
मुझको दुनिया वाले घूरे।
मैं तो बनके बड़ी होशियार गई थी।
मैं तो बनके बड़ी होशियार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
आगे बढ़ी तो एक हलवाई
पका रहा था हलवा।
आगे बढ़ी तो एक हलवाई
पका रहा था हलवा।
हलवाई का हलवा जल गया
देख के मेरा जलवा।
हाए देख के मेरा जलवा।
मैं तो घूंघट में
लेके अंगार गई थी।
मैं तो घूंघट में
लेके अंगार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
चौराहे के मोड़ पे
मुझको मिल गया एक शराबी
बीड़ी फेक के बोला हाए हाए
कहां चली ओ भाभी।
किधर चली ओ भाभी।
चौराहे के मोड़ पे
मुझको मिल गया एक शराबी
बीड़ी फेक के बोला हाए हाए
कहां चली ओ भाभी।
कहां चली ओ भाभी।
कहां आंखों में लेके
मैं खुमार गई थी।
कहां आंखों में लेके
मैं खुमार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
देखके मुझको लड़ने लग गए
चुम्मन झुम्मन कलवा।
देखके मुझको लड़ने लग गए
चुम्मन झुम्मन कलवा।
मेरी खातिर चाकू चल गए
शहर में हो गया बलवा।
हाए शहर में हो गया बलवा।
काहे करके मैं घर से सिंगार गई थी।
काहे करके मैं घर से सिंगार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
बाज़ार गई थी मैं बाज़ार गई थी।
बाज़ार गई थी मैं बाज़ार गई थी।
उई अम्मा मैं काहे को बाज़ार गई थी।
पंकज खन्ना
9424810575
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*2007 से 2020 तक IIM की प्रवेश परीक्षा CAT के लिए TIME नाम के संस्थान में Maths और Reasoning पढ़ाया है। विद्यार्थियों के लिए Maths के लिए एक ब्लॉग भी बनाया जिसका नाम है: Love Thy Numbers. वैसे तो ये स्टूडेंट्स के लिए अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन आम जन भी इसके बहुत सारे आलेख पढ़ कर अच्छी तरह समझ सकते हैं। संगीत के समान गणित भी भगवान की भाषा ही है। थोड़ी से कोशिश करने से दोनों भाषाएं समझ सकते हैं।🙏
कोई भी CAT की तैयारी करने वाला स्टूडेंट बेहिचक Tips/Tricks के लिए व्हाट्सएप पर या ईमेल (pankajharbans@gmail.com) पर संपर्क कर सकता है। ये सर्विस पूरी तरह से मुफ्त है।सैकड़ों स्टूडेंट्स ने इस ब्लॉग से पिछले सालों में फायदा उठाया है।🙏🙏🙏🙏
**उस वक्त रिकॉर्डिंग इंडिया में होती थी लेकिन रिकॉर्ड बनाए जाते थे जर्मनी में। जर्मनी में गलती से Rahman के स्थान पर जर्मन शब्द Rathman लिखा गया।
जर्मन भाषा में Rathman का मतलब होता है : परामर्शदाता, मध्यस्थ, पंच, Counsellor, Arbitrator.
फिल्मों का निर्माण शुरू होने से पहले ,राग और शास्त्रीय संगीत पे आधारित गानों/गजलों के अलावा पशुपक्षियों की आवाज की मिमिक्री , मसखरे संवाद ,और लोकप्रिय नाट्य अंशों को तवों पर उकेरा जाता था। ये रिकॉर्ड भी उसी समय के मनोरंजन की एक छोटी सी बानगी है। Archives of Indian Music को दिल से धन्यवाद ऐसे पुराने रिकॉर्ड्स को डिजिटाइज करने के लिए!🙏🙏🙏
पंकज खन्ना
9424810575