(20) मान लो जो कहे किट्टी केली।

तवा संगीत: (20) मान लो जो कहे किट्टी केली!

 पंकज खन्ना, इंदौर।

9424810575


(नए पाठकों से आग्रह: इस ब्लॉग के परिचय और अगले/पिछले आलेखों के संक्षिप्त विवरण के लिए यहां क्लिक करें।🙏)


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कुछ नए-पुराने दोस्त  जब इकठ्ठा हो जाते हैं  तो शिकायत करते हैं और मजे  लेते हैं तवा संगीत के, अपने-अपने अंदाज़ में: 

-इतने पुराने गाने!? जब देखो तब भोंपू!

-ऐसे गाने तो Radio Ceylone वाले भी नहीं सुनाते!  

-जितनी तवा-वेज नहीं खाई उससे ज्यादा तवा-संगीत सुना दिया! 

- ए लेके जाओ रे इसको! 

-काली जान क्या तुम्हारे दद्दू की मौसी थीं!? 

-किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा क्यों नहीं देते हो!?  

-कौनसे पनवाड़ी से चिल्लम भरवाते हो?!

-ये क्या तवाबाज़ी की हवाबाजी लगा रखी है। 

-अजीब तवापा मचा रखा है।

-इससे तो तुम्हारा Maths वाला ब्लॉग ही ठीक है! 

-फिर से CAT के लिए मैथ्स  पर लिखना क्यों नहीं शुरू कर देते !?

- जीवन गुज़ार दिया फोटुएं खींच-खींच कर। बर्ड्स पर ही ब्लॉग आगे बड़ा दो। हम  थैंक्यू बोलेंगे जोर से।

- बाइयों और पियाओं को सोने दो कब्रों में। तुम्हारी औकात गणित और अंग्रेजी की है। हिस्टोरियन बनने की कोशिश मत करो। औकातानुसार चलो।

- जिन पोते वाली छप्पन छुरिया दद्दियों को  छप्पन में देखकर मन ही मन में छैंया-छैंया गाते हो, उनके किस्से भी लिख दो।

- इस से अच्छा तो तुम्हारा Epeolatry वाला  ब्लॉग है। कम से कम स्टूडेंट्स के काम का तो है।

 -अच्छा भला पाई (π) पर लिखते थे, ये बाई कहां से आ गई!?

 -ये  कोई उमर है बाइयों के गाने सुनने और सुनाने की!?

-इतना घूमे हो देश-विदेश, इतनी ट्रेकिंग/साइकिलिंग की है फिर पर्यटन पर क्यों नहीं लिख डालते, हमें भी समझ आ जाएगा! 

फिर एक-दो दोस्त  बीच में सपोर्ट भी कर देते हैं।

-बहुत सही जा रहा है ब्लॉग; लगे रहो पंकज पिया

- मत सुनो इन भूतियों की। और लिखो , हम पढ़ेंगे।


बस ऐसे ही दोस्तों की बातें सुनाई देती हैं!

भाई लोगों ना तो आपको छोड़ सकते हैं और ना ही इन तवों को। रहा सवाल ट्रेकिंग , साइक्लिंग और पर्यटन का , तो इस बारे में तो बहुत लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं। शायद बाद में कभी लिखा जायेगा। अभी तो तवाबाजी करेंगे, बस!

इस देश के कौने-कौने में जितनी मात्रा में संगीत के लिए दीवानगी है उतनी ही मात्रा में 1902 से लेकर लगभग 1950 तक के मुद्रित तवा संगीत के लिए  उदासीनता भी है। इसी उदासीनता को दूर करने के लिए और अगली पीढ़ी को भी तवा भक्ति के लिए प्रेरित करना ही उद्देश्य है इस ब्लॉग का। 🙏

बात की बात निकली है, तो ऐसा जरूर कर सकते हैं कि आज आपको बदलाव के लिए अपेक्षाकृत थोड़ा नया सा गाना सुना देते हैं क्योंकि नव वर्ष का समय भी पास आ गया है। 

ये गाना सन 1965 का है। इसका संदेश तो बिल्कुल नया वाला, वर्तमान काल वाला है। ये गाना सन 1984 से दिल और दिमाग पर छाया हुआ है।

इस गाने तक पहुंचने के लिए फिर से एक बार 'फ्लैश बैक' में चलना पड़ेगा... 

सन 1984 में HPCL बंबई से नौकरी शुरू की थी। ट्रेनिंग पीरियड  के दौरान कंपनी ने  सेंट  जेवियर कॉलेज  के हॉस्टल में रहने की व्यवस्था की थी। सन 1869 में स्थापित  महापालिका मार्ग पर VT के पास  स्थित , ये कॉलेज इंडो गोथिक वास्तुकला का शानदार नमूना है। और मुंबई, महाराष्ट्र और देश की सांस्कृतिक और शैक्षणिक विरासत का एक अहम हिस्सा है।

इंदौर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई डे स्कॉलर के रूप में  हुई थी तो हॉस्टल में रहने का अनुभव  नहीं था। यहां आकर वो अनुभव भी हो गया भले ही सिर्फ कुछ महीनों के लिए। 

इंदौर के दिनों से ही पारसी अंकल से बॉम्बे रिदम हाउस ( Vinyl Records के 1948 से प्रमुख  विक्रेता) का नाम सुन रखा था। बॉम्बे पहुंचने के दो दिनों में ही बॉम्बे रिदम हाउस में हाजरी भर दी थी। तब तक 78  rpm वाले तवे पूरी तरह से अप्रचलित हो गए थे। वाइनल (Vinyl) का चलन भी कम  हो गया था और कैसेट्स का धंधा तेजी से बड़ रहा था।

बॉम्बे रिदम हाउस में हर उम्र के लोग वहां के प्रसिद्ध 'लिसनिंग रूम्स' में ज्यादातर अंग्रेजी गाने सुनते हुए दिखाई दे रहे थे।काफी देर तक अंग्रेजी और हिंदी गाने सुनने और  इधर-उधर तांका झांकी करने के बाद एक सेल्समैन से पूछ लिया की 78 rpm के रिकॉर्ड्स भी हैं क्या?

सेल्समैन कुछ बोलता उसके पहले ही पास खड़ा एक हम उम्र Vinyl प्रेमी हिप्पीनुमा दुबला-पतला लड़का पलटा और बोला: अलीबाग से आया है क्या!?* सुनकर सेल्स मैन मुस्कुरा दिया तो हम भी मुस्कुरा दिए! पुरानी आदत है; बेइज्जती को प्रशंसा समझ के स्वीकार करो! खरीदना तो कुछ था नहीं। कुंदन लाल सहगल का गाया हुआ बेहद सुंदर और सामयिक गाना -बाजार से गुजरा हूं खरीददार नहीं हूं-  याद करते हुए , Crate में रखे Vinyls उलट पलट कर निरखे, निहारे और फिर पलटी मार दी थोड़ी देर के बाद, हॉस्टल के लिए।

हॉस्टल के रास्ते में थोड़ा आगे जाने के बाद देखा तो 'अली बाग' कमेंट मरने वाला लड़का हमसे थोड़ा ही आगे-आगे  चल रहा था। उसने मुड़के देखा तो उसे शायद अली बाग का भूत नजर आने लगा! वो तेज चलने लगा। हम दोनों के बीच में गैप बड़ती जा रही थी। सेंट जेवियर कॉलेज आया तो वो जल्दी से अंदर घुस गया। पीछे से हम भी दाखिल हो गए। अब उसको समझ नहीं आ रहा था कि ये 'अलीबागी' अभी तक पीछा क्यों कर रहा है!

उसने कॉलेज क्रॉस करके हॉस्टल परिसर में प्रवेश किया।हमने भी यही किया। अब ये भाई बहुत डर गया था। वो तेजी से उसकी विंग में घुस गया और खुद से भी ज्यादा बारीक छोरों ( कुल जमा 2) की भीड़ लेकर आ गया। तब तक हम अपनी विंग में घुस कर अपने कमरे का ताला खोलना शुरू कर चुके थे। दोनों बारीक, ताला-चाबी देखते ही समझ गए और उस पर जोर-जोर से हंसने लगे। हमने उसको  ध्यान से देखा और हंसते हुए पूछा: अलीबाग से आया है क्या!?

वो पहले झेंपा, फिर थोड़ा पिघला, अंत में शोले के कालिया के समान हंसने लगा और बगैर गोली-गाली खाए दोस्त बन गया! उसका नाम था लॉरेंस। सब उसको लॉर्सो बोलते थे। 

हॉस्टल की ऊंची-ऊंची छत, पत्थर की ये मोटी दीवारें, पुराने जमाने की दर्शनीय वास्तुकला, अनुशासित, उत्साही, लार्सो के समान 'विनम्र' छात्र सभी अपने आप में मस्त! सब कुछ बेहतरीन था।हॉस्टल के वार्डन एक नेकदिल फादर थे जो हम ट्रेनीज़ को क्रिश्चियनिटी के बारे में बहुत अच्छी-अच्छी बातें बताया करते थे। हम लोग भी उनको रिटर्न गिफ्ट में Hinduism पर ज्ञान बांट दिया करते थे।वहां की शामें सुकून वाली और ज्ञान से भरी होती थीं। 

लॉर्सो , दोनों बारीक, और अन्य हॉस्टलर्स को पढ़ने का बिल्कुल शौक नहीं था पर फिर भी कॉलेज में 'पढ़' रहे थे। मातापिता के आज्ञाकारी बच्चे जो थे! तब  मोबाइल और इंटरनेट का तो अस्तित्व ही नहीं था । हॉस्टल में टीवी भी नहीं था। हॉस्टल में कभी सीढ़ी पर, कभी बास्केटबॉल कोर्ट के बीच में, कभी कॉरिडोर में और कभी-कभी कमरे में भी फिरंगी  'चौपाल' लगा करती थीं।  

हमारे कमरे में हिंदी की चौपाल लगा करती थी। इन 'फिरंगी' हॉस्टलर्स को पारसी मोहल्ले वाली हिंदी में टूसन दी जाती थी। इनके जीवन में भी करार आ जाता था। हमारे कमरे के बाहर चाक से हमारे उस समय के घर का पता लिख दिया गया था: 1, पारसी मोहल्ला, इंदौर!

और इस पते पर बहुत पते की बातें हुआ करती थीं। आप समझ ही गए छोरे कितनी छिछोरी बातें करते होंगे!

लॉर्सो फिरंगी चौपालों में गिटार के साथ Billy Joel, Phil Collins, Kenny Rogers आदि के उस जमाने के प्रसिद्ध अंग्रेजी गाने गाकर छा जाता था।  उससे काफी कुछ सीखने को मिला जैसे अंग्रेजी गानों के बारे में और विशेषतः वर्तमान में जीने की सीख।

सुबह-सुबह आठ साढ़े आठ बजे कॉलेज के कैंटीन से ही चाय नाश्ता करके फिर ट्रेनिंग के लिए ऑफिस जाया करते थे। इस आधे घंटे के दौरान जेवियर के डे-स्कॉलर्स  आना शुरू कर देते थे। छोटे शहर से आए थे, इतनी सारी फैशनेबल लड़कियां एक साथ पहले कभी नहीं देखी थीं। जहां देखो वहां लड़कियां मिनी-स्कर्ट या जींस टी-शर्ट में ,कुछ सिगरेट पीती हुईं, लड़कों से  हँस-हँस कर अंग्रेजी में बातें करती दिखाई देती थीं।  कैंटीन छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती थी! 

सोमवार से शुक्रवार तक, ट्रेनिंग के बाद शाम को 6 बजे तक हॉस्टल लौट आते थे। लॉर्सो और उसके दोस्तों के साथ शाम गुजारी जाती थी। TV नहीं था पर VT जरूर था।  VT के पास केनन पर पाव भाजी खाना और पास की दुकान से काला खट्टा पीना तो जैसे रोज का कार्यक्रम था। आस-पास की सड़कों पर घूमते थे, फिल्में देखते थे, फुटपाथ से पुरानी किताबें खरीदते थे और चौपाल तो सजाते ही थे। ( VT मतलब Victoria Terminus जिसे अब छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के नाम से जाना जाता है।)

काला घोड़ा स्थित  बॉम्बे रिदम हाउस  हफ्ते में कम से कम तीन बार तो जाते ही थे। शनिवार को 'अक्खा' दिन कैंटीन में बैठकर लॉर्सो के दोस्तों और सहेलियों के साथ 'टाइम पास' किया जाता था। 

कितने ही शनिवार निकल गए जेवियर्स में गाने सुनते हुए। जल्दी ही क्रिसमस भी आ गई। क्रिसमस और न्यू ईयर के बीच में सेंट जेवियर्स और बंबई का माहौल ही कुछ अलग होता था: जगह-जगह जगमग करती लाइटिंग, जहां देखो वहां पश्चिमी संगीत, उत्सव का माहौल, खुशनुमा मौसम , सोमरस की नदियां और चुलबुले छोरे-छोरियां नृत्य प्रदर्शन के लिए तैयार मोड में।

ये हमारी अच्छी किस्मत थी कि 31 दिसंबर 1984 को न्यू ईयर पार्टी सेंट  जेवियर्स में मनाई। रात दो बजे तक कॉलेज का फंक्शन चला। उस रात तो ऐसा   लगा जैसे यूरोप में बैठे हों। उसके बाद भी  कैंटीन में लारसो और कंपनी के डांस गाने चलते रहे। सबसे आखरी गाना अल सुबह चार बजे लॉर्सो की दोस्त डेज़ी, बंबई की पारसी लड़की, ने गाया।

ये भी 1965 का ही गाना है: Carnival is over. इसे Vinyl पर गाया है Seekers नाम के ग्रुप ने।  बाकी ऊपर वाले अंग्रेजी गाने तो हिंदी गानों के प्रेमियों को शायद पसंद न आएं पर आप चाहें तो  इस आखरी गाने को उपरोक्त  लिंक पर क्लिक करके सुन भी सकते हैं। इस गाने में भी हिंदी गानों के समान ही प्रेम और विरह के भाव हैं।

डेजी की खासियत ये थी कि वो इस अंदाज में गाती थी कि सभी सुनने वालों को  लगता था वो जैसे उनके लिए ही गा रही हो! वो सबकी गर्लफ्रेंड थी पर उसका कोई बॉय फ्रेंड नहीं था! पता नहीं कौन और कब आया उसकी जिंदगी में। अब वो दादी मां है। वो कौन था? गुमनाम है कोई!

ये हॉस्टलर्स हिंदी गानों को ज्यादा भाव नहीं देते थे। सिर्फ डेज़ी  ही फरमाइश करने पर कभी कभार हिंदी गाने सुना दिया करती थी। और उसकी पसंद का  गाना ये है जो उसने एक यादगार शनिवार को सुनाया था: इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात, गम छोड़ के मनाओ रंगरेली। फिल्म का नाम है: गुमनाम (1965)। इसे गाया है    लता मंगेशकर ने। संगीत तैयार किया है शंकर जयकिशन ने। गीतकार हैं हसरत जयपुरी । ये गाना उनकी वर्तमान में जीने की फिलोसॉफी को दर्शाता है। आप लोग भी सुन लीजिए।

लता जी ने सिर्फ दो-चार गाने ही गाए हैं हेलन के लिए। इसके अलावा लता मंगेशकर ने हेलन पर ये बहुत ही प्रसिद्ध गाना भी गाया है: आ जाने जा । बाकी लगभग सारे गाने तो आशाजी  ने ही गाए हैं।

"गम छोड़" गाने के तवे की फोटो नीचे लगा दी है। इस तवे को भी बहुत प्रयत्नों के बाद नागपुर के महाल से 1988 में खरीदा था। बहुत प्रेम है इस तवे से!




गाने के बोल नीचे लिखे हैं:


हो इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
हो इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली

जीना उसका जीना है जो हँसते गाते जी ले
जुल्फों की घनघोर घटा में नैन के सागर पी ले
जीना उसका जीना है जो हँसते गाते जी ले
जुल्फों की घनघोर घटा में नैन के सागर पी ले

जो करना है आज ही कर लो कल को किसने देखा
आई है रंगीन बहारें ले के दिन रंगीले।

हो इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली

मैं अलबेली चिंगारी हूँ नाचूं और लहराऊँ
दामन दामन फूल खिलाऊँ और खुशियाँ बरसाऊँ
मैं अलबेली चिंगारी हूँ नाचूं और लहराऊँ
दामन दामन फूल खिलाऊँ और खुशियाँ बरसाऊँ


दुनियावालों तुम क्या जानो जीने की ये बातें
आओ मेरे नज़दीक तो मैं ये बातें समझाऊँ

हो इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली

जो भी होगा हम देखेंगे गम से क्यूँ घबराएँ
इस दुनिया के बाग़ में लाखों पंछी आये जाएँ
जो भी होगा हम देखेंगे गम से क्यूँ घबराएँ
इस दुनिया के बाग़ में लाखों पंछी आये जाएँ

ऐश के बन्दों ऐश करो तुम छोडो ये ख़ामोशी
लोग हुए हैं जिंदादिल हैं जो चाहे कर जाएँ

हो इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली
और मान लो जो कहे किट्टी केली

इस गाने को समझाने के लिए कुछ भी लिखने की जरूरत नहीं है। हेलन यानी किटी ने इतनी अच्छी तरह से पहले ही समझा दिया है। गाने का फलसफा ही यही है: जो है वो सिर्फ वर्तमान है। वर्तमान को जीना ही जिंदगी है।

फिल्मी संगीत के रसिकगण ऐसा कहते हैं कि लता जी के गानों पर सिनेमा हॉल में कभी सीटियां नहीं बजा करती थीं; इतनी पवित्र गायकी थी उनकी।

फिल्मी नृत्य के रसिकगण ऐसा कहते हैं कि हेलन ने ऐसा कोई नृत्य नहीं किया जिस पर सिनेमा हॉल में सीटियां न बजी हों; इतना अदभुत था उनका नृत्य।

इस गाने में क्या हुआ होगा सिनेमा हॉल में!? आप में से किसीको याद है क्या? ये पिक्चर मां की गोद में  बैठकर 3 साल की उम्र में देखी थी। मां को  सिर्फ इतना याद है कि पिक्चर सस्पेंस वाली थी। गाने तो बस यूं ही थे!!

हमें तो ऐसा लगता है कि बहुत  सीटियां बजी होंगी इस गाने में।आप क्या सोचते हैं?


पंकज खन्ना, इंदौर।

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*बंबई/मुंबई वाले किसी को सीधे  मूर्ख न बोलते हुए इस डायलॉग  -अलीबाग से आया है क्या?-  को बेरहमी से मार देते हैं। ये डायलॉग कई पीढ़ियों से चला आ रहा है।

समुद्रतट पर स्थित बहुत सुंदर  रायगढ़ जिले का शहर अलीबाग इतिहास, संस्कृति, उद्योग, पर्यटन, चिकित्सा सुविधाओं, और शिक्षा की  पृष्ठभूमि रखता है।

कुछ वर्ष पहले अलीबाग के किसी व्यक्ति ने  बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मुहावरे 'अलीबाग से आया है क्या' पर रोक लगाने की मांग की थी। उनका कहना था कि महाराष्ट्र में किसी को मूर्ख कहने के लिए इस मुहावरे का इस्तेमाल किया जाता है। यह अलीबाग में रहने वालों का अपमान है।

मुख्य न्यायाधीश  की पीठ ने याचिका स्वीकार कर ली। संज्ञान लिया गया, सुनवाई हुई, तर्क-वितर्क हुए। पुराने रिकॉर्ड्स (तवे नहीं!) तलब हुए। सब कुछ देख समझकर न्यायमूर्ति ने याचिका खारिज कर दी। शायद वो भी यही कहना चाहते थे: अलीबाग से आया है क्या!?

हम कभी अलीबाग तो नहीं गए पर आए वहीं से हैं!🤗🙏


Comments

  1. बहुत दिनों बाद आए।तुम्हारे इतने सारे तवा लेखों में ये सबसे ज्यादा समझ में आया।

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    1. धन्यवाद दोस्त!🤗🙏

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  2. "इस दुनिया में जीना हो तो" के दर्शन का दूसरा रूप "आगे भी जाने न तू" में है। अगली बार इसी से शुरूआत कर सकते हैं। वैसे इस बार का तवा थोड़ा हट के था। शायद कोटेड?? इस संस्मरण के लिए साधुवाद।

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    1. धन्यवाद श्रीधर भाई! 🤗🙏

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  3. धन्यवाद समर्थ!🤗🙏

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  4. साहब! आप 1984 से एचपीसीएल में थे.?

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