(17) कंघी चोटी भूल गई मैं, भूली कपड़ा गहना।
तवा संगीत:(17)कंघी चोटी भूल गई मैं,भूली कपड़ा गहना
पंकज खन्ना, इंदौर।
9424810575
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बड़े-बड़े कलाकारों के महान गीतों के नाद में कभी-कभी कुछ बहुत उम्दा संगीत लंबे समय के लिए खो जाता है जिसे ढूंढ निकालने में सालों लग जाते हैं। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे कोयल की मीठी आवाज सुनने की उत्कंठा में जंगल की बाकी चिड़ियाओं की संगीतमय आवाज़ को हम लोग अक्सर नजरअंदाज़ करते हैं या भूल जाते हैं। लोग जंगल घूमने जाते हैं , बहुत खर्चा करते हैं और सबसे बड़ा आकर्षण टाइगर देखकर आ जाते हैं। धन्य हो जाते हैं , बगैर अन्य जानवर या जंगल देखे और बगैर जंगल का अप्रतिम संगीत सुने!
प्रभु ने बहुतों को अलग-अलग मधुर आवाजें दी हैं। सिर्फ कुछ ही इंसानी आवाजों को भगवान की आवाज़ का दर्जा देना, प्रभु की व्यवस्था को नकारना है।
मानव समाज में तुलना करने की बहुत बलवती प्रवृत्ति है। सबसे अच्छा संगीतकार, गीतकार, गायक, गायिका ढूंढना और फिर उनका अत्यधिक महिमामंडन करना जैसे बाकी कलाकार तो अस्तित्व में हों ही नहीं या बहुत तुच्छ हों।
संगीत के बड़े नामों को थोड़ी देर के लिए भूलकर दिमाग की खिड़की से बाहर झांकें तो और भी खुशनुमा संगीत सुनाई देगा। भगवान के बनाए अज्ञात गायक; अज्ञात गीतकारों और संगीतकारों की सुमधुर रचनाएं गाते दिखाई पड़ेंगे। इन्हें सुनें, समझें ; कई खिड़कियां खुलती जाएंगी।
चलो आज 'खिड़की' पर ही बात कर लेते हैं।
खिड़की से एक लड़की झांक रही है। ये एक ऐसी सामान्य घटना है जो आदि काल से पुरुषों को बैचेन कर देती है कुछ कर दिखाने के लिए। खिड़की से झांकती लड़कियों को देखकर पता नहीं कितने साहित्यकार,गीतकार, चित्रकार, मूर्तिकार, गुलुकार, सुनकार, आलोचक, समालोचक, रोड-रोमियो और ब्लॉगर बन बैठे हैं! कोई गिनती नी है भिया!
हिंदी और भोजपुरी फिल्मी बाबुओं ने तो हद कर दी है। अनगिनत गाने बना डाले हैं खिड़की पर। खिड़की नाम की पिक्चर भी बन चुकी सन 1948 में , जिसमें सी रामचंद्र का बढ़िया संगीत है।
चलो इसी बात पर कुछ थोड़े से नए-पुराने , अच्छे-बुरे ऐसे गीतों को लिख लेते हैं जिनमें शब्द 'खिड़की' आया है:
मेरे सामने वाली खिड़की में, शाम ढले खिड़की तले, मैं खिड़की पे आऊंगी, ये खिड़की जो बंद रहती है, रात को खिड़की खोल के रखना, आ खिड़की पे आ जाना, सुबह सुबह जब खिड़की खोले, खोल दो दिल की खिड़की, खिड़की खुले या बंद रहे, खिड़की खुली जरा पर्दा सरक गया, खिड़कियां बंद कर लो, खिड़की ( Papon), खिड़कियां (Dream Note) , कौन है खिड़की पर ( बच्चों का गीत) और मराठी में- तुझ्याच साठी आज रातिला ठेवते उघड़ी खिड़की।
(हमारी पीढ़ी के दोस्तों को सलाह है कि सिर्फ पहले तीन गानों को ही क्लिक करके देखने की हिम्मत करें। ये कुछ लिंक्स सिर्फ संदर्भ के लिए लगाए गए हैं। सिर्फ यह देखने के लिए कि ये गीत दिलो दिमाग पर ज्यादा छाते हैं या नीचे लिखा गाना।)
उपरोक्त लगभग सभी गाने काफी लोकप्रिय हैं , कुछ फूहड़ भी हैं। दृश्य कमोबेश एक जैसा है। लड़की खिड़की से झांक रही है। कभी खिड़की खुल रही है, कभी बंद हो रही है। हीरो नीचे से हिरोइन को दिन-दहाड़े लाइन मार रहा है। हीरो को एक झलक हिरोइन की दिख जाए तो खिल जाता है, झूम उठता है। अब हिरोइन भी नाच गा रही है, खुद को दिखवा रही है। संक्षेप में बोले तो खिड़की खुली, लड़की झांकी , नैन मिले, हाथ मिले, खिड़की बंद, फिलिम खतम। चवन्नियां काफी उछाली गई होंगी इनमें से कई गानों पे!
पर अब इस नीचे लिखे तवे से उतरे 'खिड़की' गीत को भी एक बार सुन लीजिए। ये गीत मधुर है, श्रृंगार रस से भरपूर है पर ये ना तो रेडियो पर बजता है, और ना ही किसी संगीत के ग्रुप में। इसका जिक्र भी नेट पर नहीं मिलता है। इसे किसने लिखा है, पता नहीं। संगीत दिया है मंजूर अहमद ने। इसे गाया है कम सुनी गई पुरानी गायिका बीना चौधरी ने।
गीत के बोल हैं: एक झलक देखा खिड़की से।
इस गीत में थोड़ी उल्टी गंगा बह रही है। लड़की खिड़की से झांकी , एक झलक एक परदेसी को देख लिया और दिल दे बैठी। परदेसी को कुछ खबर ही नहीं है।कंघी चोटी करना भूल गई, परदेसी का पता लगाने की कोशिश की, पता नहीं मिला तो अगले जन्म पर बात सरका दी, परदेसी को भी नहीं छोड़ा और उम्मीद भी नहीं छोड़ी। इश्क हो तो ऐसा, नैन से नैन तक नहीं मिले और बात कहां से कहां तक पहुंचा दी गई!
अक्सर गानों में पुरुष झांकती लड़कियों को क्षण भर के लिए देखते हैं और शायर, कवि या मजनू बन जाते हैं। और फिर बहकी बहकी, चिकनी चुपड़ी बातें करके खिड़की वाली को बहकाने फुसलाने लगते हैं!
पर ये नायिका तो अलग ही सांचे में ढली हैं। कोई और इन्हें नहीं ताड़ रहा है, बल्कि ये खुद ताड़ रही हैं खिड़की से! उन्हें तो बस वो ही परदेसी होना। कोई शायरी नहीं , कविता नहीं, बस दिल की बात। संगीत के नाम पर बस तबला और हारमोनियम। शब्द एकदम साधारण। आवाज बिल्कुल घरेलू, ग्लैमर से अति दूर। यही तो है साधारण लोगों की असाधारण बात जो दिल पर छाप छोड़ जाती है। इस परदेसी थीम पर बाद में सैकड़ों गाने आए। पर एक झलक में परदेसी दिल पे डाका डाल दे; ऐसा तो कम ही हुआ होगा। अब आगे और क्या कहें, बाकी आप पढ़ लीजिए और सुन लीजिए।
गाने के बोल कई बार सुन-सुन कर नीचे लिखे हैं, फिर भी कुछ गलतियां हो सकती हैं:
एक झलक, हां एक झलक, देखा खिड़की से ।
एक झलक, हां एक झलक, देखा खिड़की से।
तब से अपने को , तब से अपने को खोया है।
धीरज गया है जी से।
एक झलक, हां एक झलक, देखा खिड़की से, एक झलक।
जाने वाले परदेसी, ज्योति ले गया दिल की।
जाने वाले परदेसी, ज्योति ले गया दिल की।
तेरी अनजानी नगरी का,
तेरी अनजानी नगरी का पता न लगा किसी से।
एक झलक, हां एक झलक, देखा खिड़की से, एक झलक।
कंघी चोटी भूल गई मैं, भूली कपड़ा गहना।
कंघी चोटी भूल गई मैं, भूली कपड़ा गहना।
सोने का तन बन गया मिट्टी, कुछ भी रहा न अपना।
सोने का तन बन गया मिट्टी, कुछ भी रहा न अपना।
प्रात रंग सब हुए हटीके, प्रात रंग सब हुए हटीके।
एक झलक, हां एक झलक , देखा खिड़की से, एक झलक।
इस दुनिया में नहीं मिले , उस लोक में तुझको पाऊंगी ।
इस दुनिया में नहीं मिले , उस लोक में तुझको पाऊंगी ।
चंद्रलोक में आकर तारों की माला पहनाऊंगी।
चंद्रलोक में आकर तारों की माला पहनाऊंगी।
मनमाना खेलेंगे खेल, हम दोनों हिलमिल के।
एक झलक, हां एक झलक देखा खिड़की से।एक झलक।
दोस्तों, मजा आया ना!? वो तो आना ही था! हम तो केई रए थे!
और बड़े भिया आपको मजा नहीं आया? तो दुखी क्यों हो रहे हो? कौनसे पैसे दिए हैं आपने इस ब्लॉग को पढ़ने के;)
चलो यहां तक आए हो तो एक और गाना सुन लो लगे हाथ, इन्हीं बीना चौधरी की आवाज में। ये भी श्रृंगार रस का है।इस गाने में भी 'खिड़की' है। इस गाने में नैन से नैन मिल रहे हैं, हाथ से हाथ मिल रहे हैं; आपको सुकून मिलेगा बड़े भिया, आप सुनो तो सही! इनकी आवाज सुन कर जगमोहन के गाए श्रृंगार रस के गीत भी याद आ जाएंगे।🙏
गाने के बोल हैं: आज मिलन की रात। इसे किसने लिखा है पता नहीं। संगीत दिया है दुर्गा सेन ने।
ऐसा सोचने की इच्छा हो रही है कि पिछले गाने की नायिका को अनजानी नगरी का परदेसी बाबू अंततः मिल गया है और आज उनके मिलन की रात है। अब जो नायिका गा रही हैं उसे सीधे ही सुन लीजिए! अपन बाजू में कट लेते हैं।
आज मिलन की रात
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर, ओ चांद ना ढलियो ।
साजन का है हाथ हाथ में ।
नैनों में हैं नैन , हां नैनों में हैं नैन।
साजन का है हाथ हाथ में
नैनों में हैं नैन , हां नैनों में हैं नैन।
उनके मुंह पे मेरी जुल्फें, यूं चंदा पे रैन ।
हां, उनके मुंह पे मेरी जुल्फें, यूं चंदा पे रैन।
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर, आज मिलन की रात।
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर।
गाते रहें गीत मिलन का आज , नाच रहे मन आज
हां नाच रहे मन आज ।
गाते रहें गीत मिलन का आज , नाच रहे मन आज
हां नाच रहे मन आज ।
चुपके चुपके खिसक रही है इन आंखों की लाज
हां इन आंखों की लाज।
चुपके चुपके खिसक रही है इन आंखों की लाज
हां इन आंखों की लाज।
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर, आज मिलन की रात।
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर।
ओ छोटी सी बदरी खिड़की से तुम आओ आओ,
खिड़की से तुम आओ ।
ओ छोटी सी बदरी खिड़की से तुम आओ आओ,
खिड़की से तुम आओ ।
बगले सारे झांक रहे हैं, तुम घूंघट बन जाओ।
हां, बगले सारे झांक रहे हैं, तुम घूंघट बन जाओ।
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर, आज मिलन की रात।
ओ चांद ना ढलियो , ओ चांद ना ढलियो ।
मत करियो तू भोर।
फिर मिलते हैं अगले शनिवार को। तब तक बीना चौधरी के और भी सुमधुर गीत सुनने के लिए यहां क्लिक करें। इनके बारे में आगे कभी और चर्चा भी की जाएगी। तब तक आप इनके बचे गाने सुनने का होम वर्क निपटा लेना सुकून से।🙏
आप जब भी घर की या दिल की खिड़की खोलें आपको साक्षात माता के दर्शन हों इस प्रार्थना के साथ नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं!🙏🙏🙏
पंकज खन्ना, इंदौर।
9424810575
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अतिरिक्त जानकारी:
लता मंगेशकर ने भी एक गीत गाया है जिसका मुखड़ा है: आज मिलन की रात है रात है। इसे लिखा है भरत व्यास ने और संगीत दिया है मास्टर कृष्ण राव फुलंबरेकर ने सन 1959 में आई फिल्म कीचकवध में। बहुत मधुर गीत है। एक बार जरूर सुनें! लेकिन तुलना करने से बचें! गाने के बोल भी नीचे दिए हैं। (इसी गाने का ओरिजिनल मराठी गीत सुनने के लिए यहां क्लिक करें।)
आज मिलन की रात है रात है
ओ आज मिलन की रात है रात है
अधर न खले भेद न खोले
अधर न खले भेद न खोले
नैनों से नैनों की बात है बात है
रात है आज मिलन की रात है रात है
जल की लेहरिया झूम रही है
जल की लेहरिया झूम रही है
चंद्र किरण को चूम रही है
चूम रही है
ओ तीर प्यास बुझा ले प्यास बुझा ले
मदिरा की बरसात है रात है
आज मिलन की रात है रात है
आजा रे आ मत देर लगा
आजा रे आ मत देर लगा
ये घडिया न बीत कहीं जाये रे
चमकेंगे लाखो चंदा
चमकेंगे लाखो चंदा
मगर ये रात कभी फिर न आये रे
झलक रही है पॉव में पायल पाव में पायल
मेहंदी रंगे मेरे हाथ है रात है
आज मिलन की रात है रात है
आज मिलन की रात है रात है.