(26) शराबी की मैय्यत...जो पिए वो ही कांधा लगाए।
पंकज खन्ना, इंदौर।
9424810575
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ये गीत सत्तर के दशक के अंत में शराबियों के बीच में काफी प्रसिद्ध हुआ था। बस, ट्रक , टेंपो, पान की दुकानों, बार और कलालियों में ये कैसेट्स पर सुनाई पड़ जाता था। बेवड़ों के कैसेट्स में ये गाना जरूर होता था। अजीब ही शब्द थे इस गीत के: "ये शराबी की मैय्यत है, जो पिए वो ही कांधा लगाए!"
सन 1976 में EMI ने इस 45 rpm के रिकॉर्ड को रिलीज़ किया था। ये एक प्राइवेट एल्बम थी जिसका नाम था: आशिकाना कव्वाली। इस एल्बम की पहली साइड में नूरजहां बेगम जयपुरी के दो गीत हैं और दूसरी साइड में शाहेदा बानो जयपुरी के दो गीत हैं।
ये ब्लॉगपोस्ट शाहेदा बानो जयपुरी के पहले गाने के बारे में है। इस गीत को लिखा है नज़ीर उज्जैनी ने। रिकॉर्ड पर इस बात का उल्लेख नहीं है कि संगीत किसने दिया है।
गूगल पर सर्च करने के बाद भी शाहेदा बानो जयपुरी, नज़ीर उज्जैनी और इस गीत के काबिल संगीतकार की तिकड़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई। आपको कुछ भी जानकारी हो तो नीचे कमेंट्स सेक्शन में जरूर लिख दें। या फिर फोन करके बता दें।
रिकॉर्ड के कवर और तवे की फोटो नीचे लगाई है।
है ये एलान साकी का रिंदों, पारसाई न कोई दिखाए।
ये शराबी की मैय्यत है इसको, जो पिए वो हो ही कांधा लगाए।
महकशों में था कोहराम बरपा, साकी ए मयकदा रो रहा था।
जब उठाई शराबी की मैय्यत, जाम मीना ने आंसू बहाए।
ये शराबी की मैय्यत है इसको, जो पिए वो ही कांधा लगाए।
मयकदा तो मुकद्दस जगह है, मयकशों इस मुकद्दस जगह पर
आज वाइज़ को इतना बता दो, बेवजू में कदे में न जाएं।
है नज़ीर तू पुराना शराबी, महकश को गर न मिली गुलाबी।
ऐसा न हो ये मयकदे में, जा के जन्नत से फिर लौट आए।
इस गीत के कठिन शब्दों के मतलब नीचे लिखे हैं:
साकी: शराब पिलाने वाला व्यक्ति, Bartender
रिंद: धर्मिक बंधनों को न माननेवाला, मनमौजी व्यक्ति।
पारसाई: साधुता; सदाचार, धार्मिकता।
मैय्यत: मौत, मृत्यु, शवयात्रा।
मयकश : शराबी, बेवड़ा, मद्यप, पियक्कड़ ।
मयकदा: शराबखाना, मधुशाला, मदिरालय, ठेका, बार।
जाम मीना: दारू का गिलास, पैमाना, प्याला।
मुकद्दस: परम पवित्र, पूज्य
वाइज़: धर्मोपदेशक।
वजू: धार्मिक कार्य के पहले हाथ, मुंह और पैरों को धोने की प्रक्रिया।
बेवजु: बगैर वजू किए।
नज़ीर: उदाहरण, मिसाल। ( यहां नज़ीर शब्द का उपयोग गीतकार ने स्वयं के नाम के लिए किया है।)
कदे : मयकदा, शराबखाना, मदिरालय, मधुशाला, ठेका, बार।
गुलाबी: देसी दारू, ठर्रा, Hooch. (मालवा में देसी दारू को प्रायः गुलाब या गुलाबी कहा जाता है। नज़ीर उज्जैनी भी मालवी हैं!)
जन्नत: स्वर्ग
आपने ऊपर लिखे शब्दों के अर्थ समझ लिए हैं। रिंदों, अब Macho पहनकर पसर जाएं। मतलब बैठ जाइए बड़े आराम से! और तसल्ली से शाहेदा बानो जयपुरी की आवाज़ में ये बेवड़ा-स्तुति सुनने के लिए यहां क्लिक करें। उम्मीद है आपको भी इस गीत के बोल, संगीत और गायकी बहुत पसंद आएगी। शायद गुलाब भी याद आ जाएगा!
कुछ बातें इस विशेष गीत के बारे में लिखना चाहता हूं:
(1) गीत संगीत में मैय्यत का जिक्र ज़रा कम ही होता है। लेकिन इसमें मैय्यत का बखान बड़े इत्मीनान से किया गया है। वो भी एक शराबी की मैय्यत! नज़ीर ने भी क्या नज़ीर पेश की है!
(मैय्यत की बात की ही जानी चाहिए। यह जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है। मौत तो जीवन का ही एक महत्वपूर्ण भाग है। मौत मतलब जीवन का सर्वोच्च बिंदु। अगर जिंदगी सेलिब्रेट करते हैं तो मौत का भी सेलिब्रेशन जरूरी है।)
(2) इस शराबी की मैय्यत के गीत को आवाज दी है एक महिला कलाकार ने। हरकतें सारी मर्दों वाली और आवाज़ एक महिला की! इस गाने को एक अन्य महिला कलाकार पाकिस्तान की मुन्नी बेगम ने भी गाया है। बहुत अच्छा गाया है। चाहे तो यहां क्लिक करके सुन लें। किसी भी प्रसिद्ध पुरुष गायक के स्वर में ये रचना सुनाई नहीं देती है। ये बात कभी समझ नही आई।
(3) तुलनात्मक रूप से देखें तो ये बहुत पुराना गीत नहीं है। उस सत्तर के दौर के गानों में संगीतकार को क्रेडिट मिलता था। पर इस गाने के संगीतकार को कोई क्रेडिट नहीं दिया गया है। क्यों भाई EMI कंपनी?
(4) नज़ीर ने इस गीत में वैसे तो उच्च कोटि के उर्दू शब्दों का उपयोग किया है लेकिन अंत में शराब शब्द को न लिखते हुए मालवी स्टाइल में गुलाबी शब्द इस्तेमाल किया है। मतलब ये कि उन्होंने आखिरकार जता ही दिया के वो भी हैं तो मालवी तबियत के ही!
(5) पांचवी और आखरी बात! ये गीत या ये अंदाज़ या ये गायकी अब प्रचलन में क्यों नहीं है? मदिरालयों में भी ये गीत नहीं बजता है। मयकश भी कमोबेश इस बेवड़े-भजन को भूल चुके हैं। और पुराने जमाने वाले मयकश भी धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। और क्यों गुमनाम हैं 'गुलाबी' पीकर बेहतरीन शायरी लिखने वाले?